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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः २२५ इसे काली मिर्च के चूर्ण और घीके साथ जाता है; तथा अत्यन्त उत्साह वृद्धि होती और खानेसे प्रमेह, शूल, क्षय, पाण्डु और मन्दाग्निका सहस्रों स्त्रियोंसे समागम करनेकी शक्ति आ नाश होता तथा वीर्यको वृद्धि होती है। जाती है। (५५८८) महेश्वररसः (२) अत्यन्त स्त्रीप्रसंगसे जिनका शुक्र क्षीण हो - ( रसे. सा. सं. ; र. रा. सु. । रसायन.) । गया है उनमें इस रसके सेवनसे अत्यन्त शुक्रवृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त यह रस बल बुद्धिको रसं भस्मीकृतं कोलं गन्धकं शोधितं समम् । बढ़ाता और स्थूल शरीरको सम तथा कृशको पुष्ट लौहं कर्षद्वयं ताम्रमर्द्धकोलकसम्मितम् ॥ करता है। सुवर्ण जारितं दद्याच्छाणाई सुविचक्षणः । __(५५८९) महोदधिरसः (१) अभ्रं कर्षद्वयं दद्याच्छाणार्द्ध चन्द्रचूर्णकम् ॥ | (भै. र. । तृष्णा. ; रसें. सा. सं.; धन्व. । तृष्णा.) श्यामाबीजं वरीश्चैव बलामतिबलां तथा।। एलाश्च शङ्कपुष्पश्च शाणमानं विनिःक्षिपेत् ।। ताम्रश्च वङ्गकञ्चैव मूतं तालं सतुत्थकम् । जलेन वटिकां कृत्वा गुञ्जामात्रां प्रदापयेत् । | वटाङ्कुररसैर्भाव्यं तृष्णाहृद्रक्तिपादतः ॥ सेवनादस्य कन्दर्परूपो भवति मानवः ॥ ____ ताम्र भस्म, बंग भस्म, रससिन्दूर, शुद्ध सहस्रं याति नारीणामुत्साहो जायतेऽधिकः । हरताल और नीलाथोथा (तूतिया) भस्म समान नित्यं स्त्रीसेवनावस्तु क्षीणशुक्रो भवेन्नरः ॥ भाग लेकर सबको बड़के अङ्कुरोंके स्वरसमें घोट महाशुक्री भवेत्सोपि सेक्नादस्य नान्यथा। कर सुरक्षित रक्खें । महाबलो महाबुद्धिर्जायते नात्र संशयः॥ | इसे २ चावल मात्रानुसार खिलानेसे तृष्णा स्थलानां कर्षकः श्रेष्ठः कृशानां पुष्टिकारकः । शान्त होती है। रसो विनाशयेद्रोगान्सप्तसप्ताहभक्षणात् ॥ (५५९०) महोदधिरसः (२) पारद भस्म ( या रस सिन्दूर ) २ शाण, (भै. र. । वृद्धि.) शुद्ध गन्धक २ शाग, लोह भस्म ८ शाण, ताम्र- रसं गन्धं तथा हेम वज्रविद्रुममौक्तिकम् । भस्म १ शाण, सुवर्ण भस्म आधी शाण, अभ्रक- गृहीत्वा समभागेन मर्दयेत् त्रिफलाम्बुना॥ भस्म ८ शाण, कपूर आधा शाण तथा विधारेके गुञ्जाद्धपमिताः कुर्याद् वटाश्छायाप्रशोषिताः। बोज, शतावर, खरैटी, अतिबला (कंघी), इलायची | एकैकां दापयेदासां यथादोषानुपानतः ॥ और शंखपुष्पीका चूर्ण १-१ शाण लेकर सबको | रुद्धान्त्रत्वमन्त्रवृद्धि तथान्यानन्त्रजान् गदान् । पानीके साथ एकत्र घोट कर १-१ रत्तीकी वातपित्तकफोत्थांश्च सर्वान् हन्ति महोदधिः॥ गोलियां बनावें। ___ शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, स्वर्ण भस्म, हीराइसके सेवनसे मनुष्य अत्यन्त स्वरूपवान हो भस्म, मूंगा भस्म और मोती भस्म समान भाग For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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