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कषायप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः (५०५३) मुस्तादिकाथः (७) (५०५६) मुस्तादिकाथः (१०) (भै. र. बालरोगा.)
(यो. र. ज्वराः; वृ. नि. र. ज्वरा. ) .. मुस्तकातिविपाशुण्ठीबालकेन्द्रयवैः कृतम् ।।
| मुस्ता पर्पटको यष्टी गोस्तनी समभागतः। क्वार्थ शिशुः पिबेत्मातः सर्वातीसारनाशनम् ॥
अष्टावशेषतः काथो निपीतो मधुना सह ॥
पित्तभ्रम ज्वरं दाहं हन्ति छदि समन्थराम् ॥ नागरमोथा, अतीस, साठ, सुगन्धबाला और
नागरमोथा, पित्तपापड़ा, मुलैठी और मुनक्का इन्द्रजौ समानभाग लेकर क्वाथ बनावें ।
समान भाग लेकर सबको अधकुटा करके आठगुने यह काथ प्रातःकाल पिलानेसे बच्चांका
पानीमें पकावें और जब आठवां भाग पानी शेष अतिसार नष्ट होता है।
रहे तो उतारकर छान लें। (५०५४) मुस्तादिकाथः (८) ।
इसमें शहद मिलाकर पीनेसे चित्तभ्रम, ( भै. र. ज्वरा.)
ज्वर, दाह, छर्दि और मन्थरज्वर नष्ट होता है। मुस्तपर्पटकोत्पलकिरातोशीरचन्दनात् कर्षः।। (५०५७) मुस्तादिकाथः (११) .. शर्करयाच क्रियते वातपित्तज्वरे बहुधा दृष्टफलः॥ (यो. र. सन्निपाता.)
नागरमोथा, पित्तपापड़ा, नीलोत्पल, चिरायता, जलदाहयपद्मकपर्पटकैखस और लाल चन्दन १०-१। तोला लेकर मलयोद्भवजातिवरीमधुकैः । काथ बनावें ।
मधुनिम्बजलानलचन्दनकैः इसमें खांड मिलाकर पिलानेसे वातपित्तज्वर कथितं मुखरक्तहरं सलिलम् ॥ नष्ट होता है। यह अनेकों बारका अनुभूत नागरमोथा, पद्माक, पित्तपापड़ा, चन्दन, प्रयोग है।
चमेली, शतावर और मुलैठी का अथवा मीठानीम, (५०५५) मुस्तादिकाथः (९) सुगन्धबाला, चीता और चन्दनका क्वाथ पीनेसे
मुंहसे आता हुवा रक्त और सन्निपात (न्यूमोनिया) (भै. र.; वृ. नि. र.; व. से. ज्वरा.)
नष्ट होता है। मुस्तं वत्सकबीजानि त्रिफला कटुरोहिणी ।
(५०५८) मुस्तादिकाथः (१२) परूषकाणि च क्याथः कफज्वरविनाशनः ॥
(यो. २. सन्निपा.) नागरमोथा, इन्द्रजौ, हर्र, बहेड़ा, आमला, जलधरमलयजनागर कुटकी, और फालसेके फल समानभाग लेकर सवालकोशीरपर्पटैः क्वथितम् । क्वाथ बनावें।
यः पिबति पयः शीतं यह क्वाथ कफवरको नष्ट करता है।
शाम्यति रुग्दाहकस्तस्य ॥
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