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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - भारत-भैषज्य-रत्नाकरः . [ मकारादि यह औषध बच्चोंको रोगोंके भाक्रमणसे बचा (५५४०) महाचन्द्रप्रभावटी नेके लिये अत्यन्त प्रभावशाली है। (र. का. . । वातरक्ता. ३९) इसके सेवनसे ज्वर नष्ट होता, अग्नि दीप्त होती भनिम्बामरदारुसैन्धववचाव्योषेभकृष्णाशटीऔर बल वर्णकी वृद्धि होती है। चित्राणि त्रिफलविडङ्गचविकादावर्वी त्रिभण्डी विषा यह रस दुस्साध्य संग्रहणी, प्रवाहिका, वैद्योंसे अक्षग्रन्थिकताप्यधान्यरजनी क्षारद्वयाम्भोमुचां त्यक्त सूतिका रोग, श्वास, अतिसार और उपद्रव कांशैः कुडवः पुरस्य च पलं वांश्या घृतेनासहित बाल रोगोंको नष्ट कर देता है । रोगग्रस्त न्विता ॥ बालकों और स्त्रियोंके लिए विशेष हितकारी है। प्राप्तेयं गुटिका प्रसाध शशिना चन्द्रप्रभाख्यां भृशं ___ बालकोंका अनिष्ट करने वाले पिशाच, दानव हन्त्यर्शः क्षयकुष्ठमेहजठरप्लीहाग्निसादोदरान्। और दैत्य इसे देखते ही पलायन कर जाते हैं । मूत्राघातविसूचिकागलशिरःकर्णाक्षिनेत्रामयान् यह औषध वाजीकरण भी है। वासानाहभगन्दरारुचिवमिच्छर्दिभ्रमं पाण्डुताम् पूर्ण मात्रा-६ रत्ती। दद्रूकुष्ठहलीमकं कृमिगदोन्मादामवातादिकान् वातामृपवनामयातितिमिरानाहाश्मरीपीनसान् महागुल्मकालानलो रसः शूलारोचकशोथदाहवमिनिःसस्ताम्लपित्तारती: ( र. रा. सुं.; र. सा. सं.; रसें. चि. म.; धन्व. । स्थूलं स्थूलतरं कृशं समतनुं कुर्याभृशं सेविता।। गुल्मरो.) चिरायता, देवदारु, सेंधानमक, बच, सेठ, मिर्च, पीपल, गजपीपल, कचूर, दन्तीमूल, हर्र, प्रयोग सं. १५६८ देखिये । बहेड़ा, आमला, बायबिडंग, चव, दारुहल्दी, महाचन्द्रकलारसः निसोत, अतीस, बहेड़ा, पीपलामूल, सोनामक्खी भस्म, धनिया, हल्दी, जवाखार, सुहागा और (यो. त.। त. ४८; वै. र. । दाह.; वृ. यो. नागरमोथा। प्रत्येक का चूर्ण १।-१। तोला तथा त. । त. १००) शुद्ध गूगल २० तोले और बंसलोचनका चूर्ण ५ ' चन्द्रकला रस ' सं. १८८५ देखिये। तोले लेकर सब चूर्णीको एकत्र मिला लें और फिर उसमें भावना द्रव्यों में दूर्वा और रामशीतली भी हैं | गूगलमें थोड़ा थोड़ा यह चूर्ण तथा आवश्यकता. जो 'महा चन्द्रकला' में नहीं हैं, उनके स्थानमें नुसार घी डालते हुवे खूब कूटें। जब समस्त चूर्ण इसमें खस और तालमूलीकी भावना लिखी हैं। और गूगल मिल कर एक-जीव हो जाए तो शेष प्रयोग समान है। | (१-१ माशेकी ) गोलियां बना लें । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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