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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[मकारादि
गृहे यस्य शतं नार्यों विद्यन्तेऽतिव्यवायिनः। इससे जठराग्नि भी इतनी प्रबल हो जाती है न तस्य लिङ्गशैथिल्यमौषधस्यास्य सेवनात ॥ कि काष्ठ भी पचा सकती है ।
(५५२१) मरिचादिवटी न च शुक्रं क्षयं याति न बलं हासतां ब्रजेता
(वृ. नि. र. । अतिसारा.) कामरूपी भवेन्नित्योवृद्धः षोडशवर्षवत् ॥
" मरीचं खरं नागफेनं तन्दुलतज्जलैः । रसायनवरो बल्यो वाजीकरण उत्तमः। मद्य तन्दलतोयेन गुटी सर्वातिसारजित् ।। रसः श्रीमन्मथाभ्रोऽयं महेशेन प्रकाशितः ॥ काली मिरचका चूर्ण, शुद्ध खपरिया और अस्य भक्षणमात्रेण काष्ठं जीर्यति तत्क्षणात् । अफीम समान भाग लेकर सबको चावलोंके पानीमें नाशयेद् ध्वजभङ्गादीन् रोगान् योगकृतानपि ॥ घोट कर ( काली मिर्चके बराबर ) गोलियां
बना लें। शुद्ध पारद और गन्धक २॥-२॥ तोले, |
| इसे चावलोंके पानीके साथ सेवन करनेसे अभ्रक भस्म २॥ तोले, कपूर ७॥ माशे, बंग भस्म
समस्त प्रकारके अतिसार नष्ट होते हैं। ७॥ माशे, ताम्र भस्म ३।। माशे, लोह भस्म १।
__ (५५२२) मलभेदीरसः तोला तथा विधारा मूल, जीरा, बिदारीकन्द, श
(र. चि. म.। स्तबक १०) तावर, तालमखाना, बीजबन्द (खरैटीके बीज ),
पारदं गन्धकं चैव सौभाग्य पिप्पली समम् । कौंचके बीज, अतीस, जावत्री, जायफल, लौंग,
समांशं जयपालं च क्रियते रेचनं परम् ॥ भांगके बीज, सफेद राल और अजवायन; सबका |
शीतेन रेचयेत्सम्यगुष्णेनैव प्रशामयेत् ॥ चूर्ण ५-५ माशे लेकर सबको एकत्र घोट लें ।
शुद्ध पारद, शुद् गन्धक, सुहागेकी खील इसे २ रत्ती मात्रानुसार खाकर ऊपरसे और पीपलका चूर्ण १-१ भाग तथा शुद्ध जमाल. मन्दोष्ण दूध पीना चाहिये।
गोटा ४ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली
बनावें और फिर उसमें अन्य औषधे मिला कर यह रस अत्यन्त बलकारक और वाजीकरण
| सबको भली भांति खरल करके गोलियां बना लें । है। इसको सेवन करने वाला पुरुष सौ स्त्रियोंके ।
इन्हें ठण्डे पानीके साथ खिलानेसे विरेचन साथ समागम करे तो भी न तो लिङ्ग-शैथिल्य ही
होता है और उष्ण जल पिला देनेसे दस्त बन्द हो होता है, न वीर्य की कमी होती है और न ही
ता है और न ही जाते हैं। बलहास होता है।
(मात्रा-१ रत्ती ) - इसे सेवन करने से वृद्ध पुरुष भी षोडश- (५५२३) मल्लचन्द्रोदयः (१) वर्षीय युवाके समान (वीर्यवान ) हो जाता है । (रसायन सार । सन्निपात. ) दुष्ट प्रयोगोंसे उत्पन्न नपुंसकता भी इसके सेवनसे नैम्बूकनीरेण दिनत्रयन्तु नष्ट हो जाती है।
श्वेतादिरूपांश्चतुरोऽपि मल्लान् ।
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