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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [मकारादि आम्रजम्बूकिशलयं कोमलं नलिनीदलम् । शतमूली विदारी च रजतं लौहमभ्रकम् ॥ एषां कोलमितं चूर्ण द्विगुणा सितशर्करा । वरीरसस्य प्रस्थार्दै पचेन्मन्देन वह्निना ॥ घनीभूते क्षिपेच्चूर्ण शीतीभूते पलं मधु । मधुकाधवलेहोऽयं महादेवेन भाषितः ।। दुस्तरं प्रदरं हन्ति नानावण सवेदनम् । योनिशुलं कुक्षिशूलं बस्तिशूलं सुदुःसहम् ॥ रक्तातिसारं रक्तार्शो रक्तपित्तं चिरोद्भवम् । मूत्ररोगानशेषांश्च दाहं मोहं वर्मि भ्रमिम् ॥ नाशयेन्नात्र सन्देहो भास्करस्तिमिरं यथा ॥ मुलैठी, सफेद चन्दन, लाख, लाल कमल के फूल, रसौत, कुशाकी जड़, खस, खरैटी की जड़, बासे की जड़, बेरकी गुठली की गिरी, नागरमोथा, बेलगिरी, मोचरेस, दारु हल्दी, धायके फूल, अशोककी छाल, मुनक्का, गुडहलकी कलियां, आम और जामनकी कोंपलें, कमलिनीके कोमल पत्ते, शतावर और विदारीकन्द । इनका चूर्ण तथा चांदी भस्म, लोह भस्म और अभ्रक भस्म आधा आधा कप (प्रत्येक ७॥ माशे) ले कर सबको एकत्र मिलाले । तदनन्तर २६ कर्ष (३२॥ तोले) खांड को १ सेर (८० तोले) शतावरके रसमें धोल कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब अवलेहके समान गाढ़ा हो जाय तो उसमें उपरोक्त चूर्ण मिलाकर अग्निसे नीचे उतार लें । जब यह अवलेह ठंडा हो जाय तो इसमें ५ तोले शहद मिला कर सुरक्षित रक्खें । ___ इसके सेवनसे वेदना युक्त लाल, पीला आदि अनेक वर्ण वाला भयंकर, प्रदर, योनिशूल, कुक्षि- शूल, दुस्सह बस्तिशूल, रक्तातिसार, रक्ताश, पुराना रक्तपित्त, मूत्र रोग, दाह, मोह और वमनादि रोग नष्ट होते हैं। ( मात्रा-१ तोला।) (५५०३) मधुपक्कहरीतकी ( यो. चि म. । अ. १) सुपकपथ्यापलपञ्चकं च मृत्रे गवां प्रस्थमिते विपाच्यम् । प्रस्थे पुनः कांजिकदुग्धतके पक्त्वा ततो निष्कुलिकां विधेया॥ व्योषं यवानि कुटजस्य बीजं मुस्ता जलं दाडिमथाम्लवेतसम् । सधातुकीपुष्पमजाजियुग्म ___कणाजटा मोचरस सबिल्वम् ।। सौवर्चलं सैंधवमश्मवल्क जम्बाम्र मज्जातिविषा च पाठा । लवङ्गजातीफलतुर्यजाता न्येतानि तुल्यानि विचूर्णितानि ।। कपित्थमाण्डूरमयोदशांशं समस्तचूर्णार्द्धमिता सिता च । एतैश्च पथ्या परिपूरणीया सूत्रेण युक्त्या परिवेष्टनीया ॥ स्थाल्यां ततस्ताः क्रमशो निधाय तृणानि मुक्त्वा परितो विमुच्य । मन्दाग्निना याममथो विपाच्य विहाय शीता मधुनिःक्षिपेच ॥ ताःसेव्यमाना ग्रहणी प्रमेह कासापहा अग्निकराः सदृष्याः । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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