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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[मकारादि
इसे ११ तोलेकी मात्रानुसार चीतेकी कलियों मिलाकर सेवन करनेसे पाण्डु और कुम्मकामला के चूर्णके साथ सेवन करनेसे असाध्य शोथ भी शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। नष्ट हो जाता है।
मण्डूरसे दशगुना गुण मुण्ड लोहमें, मुण्डसे (व्यवहारिक मात्रा-१ माशा।) | १०० गुना तीक्ष्ण लोहमें और तीक्ष्णसे लाख गुना (५४७२) मण्डूरमारणविधिः (१) गुण कान्त लोह में होता है। (रसे. सा. सं.; र. मं.)
(५४७३) मण्डूरमारणविधिः (२) ये गुणा मारिते मुण्डे ते गुणामुण्ड किटके ।
(र. र. स. । अ. ५) तस्मात्सर्वत्र मण्डूरं रोगशान्त्यै प्रयोजयेत् ॥
गोमूत्रैस्त्रिफला क्वाथ्या तत्क्वाथे सेचयेच्छन। शतोर्द्धमुत्तमं किटं मध्यञ्चाशीतिवार्षिकम ।
| लोहकिट्ट सुसंतप्तं यावजीर्यति तत्स्वयम् ॥ अधमं षष्टिवर्षीयं ततो हीनं विषोपमम् ॥
| तच्चूर्ण जायते पेष्यं मण्डूरोयं प्रयोजयेत् ॥ दग्ध्वाक्षकाष्ठैमलमायसन्तु
त्रिफलाको (८ गुने) गोमूत्रमें पकावें । जब गोमूत्रनिर्वापितमष्टवारान् ।
चौथा भाग शेष रहे तो छान लें फिर मण्डूरको बार विचूर्ण्य लोढं मधुनाऽचिरेण
बार अग्निमें तपा तपा कर इस क्वाथमें बुझायें; और कुम्भाह्वयं पाण्डुगदं निहन्ति २ ॥
जब वह भस्मके समान हो जाय तो खरल
| करके रख लें। किट्टादशगुणं मुण्डं मुण्डात्तीक्ष्णं शताधिकम् । तीक्ष्णाल्लक्षगुणं कान्तं भक्षणात्कुरुते गुणम् ॥
_(५४७४) मण्डूरमारणविधिः (३)
(र. र. स. । पू. खं. अ. ५) मुण्डकिट्ट (मण्डूर) में भी मुण्डलोह-भस्मके
अक्षागारैधमेत्किटें लोहजं तद्गवां जलैः । समान ही गुण होते हैं अत एव (लोह-भस्म के
सेचयेदक्षपात्रान्तः सप्तवारं पुनः पुनः ॥ स्थान में ) मण्डूर भी प्रयुक्त किया जा सकता है।
मण्डूरोयं समाख्यातश्चूर्ण श्लक्ष्णं नियोजयेत् ।। सौ वर्षसे अधिक पुराना मण्डूर उत्तम, अस्सी बहेड़ेके कोयलांमें मण्डूरको बार बार तपा. वर्ष का मध्यम, ६० वर्षका निकृष्ट और इससे कर बहेडेकी लकड़ी के पात्रमें गोमूत्रमें बुझावें । इस कम पुराना विषके समान हानिकारक होता है।। प्रकार सात बार बुझानेसे मण्डूर सेवन योग्य हो
मण्डरको बहेड़ेकी लकड़ियोंकी अग्नि में | जाता है । इसे भली भांति खरल करके रक्खें और तपा तपा कर आठ बार गोमूत्रमें बुझानेसे वह | आवश्यकतानुसार काममें लावें । सेवन योग्य हो जाता है। इसे चूर्ण करके शहद में (५४७५) मण्डूरमारणविधिः (४)
(यो. चि. म. । अ. ७) नृणां क्षयमिति पाठान्तरम् । २ यह योग सु. सं.; वृ. मा.; ग. नि. और अक्षारैधेमेत्किर्ट लोहजं तदगवां जलैः। भा.प्र. में भी है।
सेचयेत्तप्ततप्तं च सप्तवारं पुनः पुनः॥
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