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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - १३८ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ मकारादि मसूर, मूंग, चना, मोठ और छिलके-रहित । जलांश शुष्क हो जाए तो घीको छानकर उसमें जौ के (समान भाग मिश्रित अथवा पृथक् पृथक्) | मोम (कल्कमें कथित) मिलादें । चूर्णको ( घीमें मिलाकर) लेप करनेसे विसर्प नष्ट यह घृत समस्त प्रकारके ब्राको नष्ट कर होता है। देता है । आगन्तुक व्रण, सहज व्रण, शिरके ब्रण (५३७२) महा गौर्याचं घृतम् और विषम नाडीव्रण ( नासूर ) भी इसके प्रभावसे (ग. नि. । घृता.) शीघ्र ही भर जाते हैं। गौरी हरिद्रा मञ्जिष्ठा मांसी कटुकरोहिणी ॥ | (५३७३) महाराष्ट्रयादिलेपः प्रपौण्डरीकं मधुकं भद्रमुस्तं सचन्दनम् ।। (र. चि. । स्क. १०) जातीनिम्बपटोलञ्च कारखं बीजमेव च ॥ महाराष्ट्रीसकर्पूरा ह्येकचिश्चाफलद्रवः । कट्फलं समधूच्छिष्टं समभागानि कारयेत् । द्रावयेलिङ्गलेपेन सद्यो हि बहुकामिनीः ॥ पञ्चवल्ककषायेण घृतप्रस्थं विपाचयेत् ॥ ___ जलपीपल और कपूर के समान भाग मिश्रित सीरद्विपस्थसंयुक्तं शनैर्मदग्निना पचेत् । चूर्णको इमलीके फलके रसमें घोटकर लिंग पर लेप एतद्गौरं महावीर्य सर्वव्रणविशोधनम् ॥ | करके स्त्री-समागम करनेसे स्त्री शीघ्र ही द्रवित हो आगन्तुसहजाश्चैव शिरःश्लिष्टाश्च ये व्रणाः। जाती है। विषमामपि नाहीं च रोहयेच्छीघ्रमेव च ॥ | (५३७४) माकन्दफलादिलेपः कल्क-दारु हल्दी, हल्दी, मजीठ, जटा (शा. सं. । उ. खं. अ. ११) मांसी, कुटकी, पुण्डरिया, मुलैठी, नागरमोथा, सफेद | माकन्दफलसंयुक्तमधुकर्पूरलेपनात् । चन्दन, जावत्री, नीमके पत्ते, पटोल, करञ्जबीज, गतेऽपि यौवने स्त्रीणां योनिढातिजायते ॥ कायफल और मोम समान भाग मिश्रित २० तोले __ आमका फल और कपूरके चूर्णको शहदमें ( प्रत्येक १ तोला ४ माशे ) लेकर, मोमके अति मिलाकर लेप करनेसे गतयौवना स्त्रीकी योनि भी रिक्त सब चीजोंको कूट लें । अत्यन्त संकीर्ण हो जाती है। काथ--बड़, पीपलवृक्ष, गूलर, पिलखन और बेतकी छाल समान भाग मिश्रित ४ सेर (५३७५) माकन्दबीजादिलेपः (प्रत्येक ६४ तोले ) लेकर सबको अधकुटा करके (रा. मा. । शिरो.) ३२ सेर पानीमें पकावें । जब ८ सेर पानी शेष माकन्दबीजसहितामलकालिप्तरहे तो छान लें। मूर्ध्न शिरोरुहभरः समुपैति दृद्धिम्। २ सेर घीमें ४ सेर दूध और उपरोक्त कल्क आमकी गुठली और आमले को पानीमें तथा काथ मिलाकर मन्दामि पर पकावें । जब | पीसकर लेप करनेसे केश खूब बढ़ते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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