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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेपप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः . घोटकर लिंग पर लेप करनेके थोड़ी देर बाद स्त्री- प्रन्थिश्च भौजः करवोरमूलं समागम करनेसे स्त्री द्रवित हो जाती है। चूर्णानि साध्यानि तुषोदकेन । (५३५६) मनःशिलादिलेपः (२) पलाशनिर्दाहरसेन वापि ( वृ. नि. र. । त्वग्दो.; व. से. । कुष्ट.) कर्पोदधृतान्याढकसम्मितेन । दार्वीप्रलेपं प्रवदन्ति लेपमनःशिलाल मरिचानि नैल मेतत्परं कुष्ठविनाशनाय ॥ मार्क पयः कुष्ठहरः प्रसिद्धः। करञ्जवीजैडगजं सकुष्ठं मनसिल, कुड़ेकी छाल, कूठ, कसीस, पंवाड़के गोमूत्रपिष्टं च वरः प्रदेहः ॥ बीज, करञ्जफल, भोजपत्र वृक्षकी गांठ और कने रकी जड़का चूर्ण १२-१। तोला लेकर सबको (१) मनसिल, हरताल और काली मिर्चका ८ सेर कांजी या पलाश-निर्दाह रसमें पकावें । चूर्ण तथा आकका दूध और सरसोंका तेल समान जब अवलेहके समान गाढ़ा होकर करछीको लगने भाग लेकर सबको एकत्र घोटकर लेप करनेसे कुष्ट लगे तो अग्निसे नीचे उतार लें। (श्वेत कुष्ट) नष्ट हो जाता है । यह लेप कुष्टोंको नष्ट करनेके लिये अत्यन्त (२) करन बीज, पंवाड़के बीज और कूटके समान-भाग-मिश्रित चूर्णको गोमूत्रमें पीसकर लेप उपयोगी है। करनेसे भी कुष्ट नष्ट हो जाता है। (पलाशनिर्दाह-रसकी निर्माण-विधि) पलाश (ढाक) के वृक्षकी प्रधान जड़में एक बड़ा (५३५७) मनःशिलादिलेपः (३) गढ़ा करके उसमें एक धड़ा रख दें और फिर वृक्षमें __ (व. से. । कुष्ट.) आग लगादें । इससे जो रस वृक्षसे निकल कर समनःशिला विडङ्ग कासीसरोचनाकनकपुष्पी च । घड़ेमें जमा हो उसे निकाल लें । यही 'पलाशवित्राणां प्रशमाथै ससैन्धवं लेपनं दद्यात् ॥ निर्दाह रस' है।) मनसिल, बायबिडंग, कसीस, गोलोचन, (५३५९) मनःशिलादिलेपः (५) कनेरकी जड़ और सेंधा नमकके समान-भाग- ( वृ. मा.; च. द.; वृ. नि. र.; र. र.; यो. र.; मिश्रित बारीक चूर्णको ( पानीमें पीसकर ) लेप व. से. । व्रणशोथा.; वृ. यो. त. । त. १११ ) करनेसे (श्वेत कुष्ठ) नष्ट होता है । मनःशिला समअिष्ठा सलाक्षा रजनीद्वयम् । (५३५८) मनःशिलादिलेपः (४) प्रलेपः सघृतक्षौद्रस्त्वग्विशुद्धिकरः परः ।। (च. द. । कुष्ठा. ४९) ___मनसिल, मजीठ, लाख, हल्दी और दारुमनःशिलात्वक्कुटजात्सकुष्ठा हल्दीके समान भाग मिश्रित बारीक चूर्णको घ त्सलोमशः सैडगजः करमः। | और शहदमें मिलाकर लेप करनेसे, धावको आराम For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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