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तैलप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः
११३ शुक्राढयोतिमाननल्पतनयःपण्डोऽपि रत्युत्स्को (५३०८) महासुगन्धिलक्ष्मीविलास वन्ध्या गर्भवती भवेदपि तथा वृद्धापि मूते
तैलम् सुतम् ।
(च. द ; धन्व.; र. र. वातव्या.) कण्डूस्वेदविचचिकामयहरं दौर्गन्ध्यकुष्ठापहमश्विभ्यां परिकीर्तितं बहुगुणं तैलं सुगन्धं महत्॥
जिङ्गीचोरकदेवदारुसरलं
___ व्याघ्रीवचाचेलककल्क-कपूर, अगर, दालचीनी, बोल,नालीको
त्वपत्रैः सह गन्धपत्रकशठीशाक, लाख, कचूर, धायके फूल, सतौना, एलया.
पथ्याक्षधात्रीधनः । लुक, काली तुलसी, भूरिछरीला, जटामांसी, गूगल,
एतैः शोधितसंस्कृतैः पलयुगेछोटी इलायची, केसर, गोलो चन, दौना, श्रीवास
त्याख्याता संख्यया (धूपसरल), जायफल, कंकोल, सुपारी, शतावर,
तेलप्रस्थमवस्थितैः स्थिरमतिः कस्तूरी, मुरामांसी, नागरमोथा, लौंग, कूठ, शिला
कल्कः पचेद्गान्धिकैः ॥ रस, खस, रेणुका, सफेद चन्दन, गठीवन, चीड़,
मांसीमुराद्मनचम्पकसुन्दरीत्वकनखी, जावित्री,काकड़ासिंगी, पद्माख, तगर और मालती के फूल ५--५ तोले ले कर सबको एकत्र
ग्रन्थ्यम्बुरुङ्मरुवकैपिलैः सपृक्कैः ।
श्रीवासकुन्दुरुनखीनलिकामिषीणां. पीस लें। __क्याथ-लाख, मजीठ और लोध; तीनों समान
प्रत्येकतः पलमुपायं पुनः पचेत्तु ।।
एलालवङ्गचलचन्दनजातिपूतिभाग मिश्रित १६ सेर लेकर सबको अधकुटा करके १२८ सेर पान में पका । जब ३२ सेर पानी
___ ककोलकागुरुलताघुसणैः पलाधैः ।
कस्तूरीकाक्षसहितामलदीप्तियुक्तैः रह जाय तो छान लें।
पक्त्वा तु मन्दशिखिनैव महासुगन्धम् ।। ८ सेर तेलमें उपरोक्त क्वाथ और कल्क मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाय (पञ्चद्विकेन वार्धन मदात्कपरमिष्यते । तो तेलको छान लें।
कर्पूरमदयोरधं पत्रकल्कादिहेष्यते ॥ ___ इसकी मालिशसे वृद्ध पुरुष भी युवाके समान पकतेऽप्युष्ण एव सम्यक्पेषणवर्तितम् । कान्ति और वीर्यवान हो जाता है। तथा नपुंसक दीयते गन्धवृद्धयर्थ पत्रकल्कं तदच्यते ॥ पुरुषको कामोत्तेजना होने लगती है। ____ इसके प्रभावसे वन्ध्या स्त्री गर्भ धारण कर पागुक्तौ शुद्धिसंस्कारौ गन्धानामिह तैः पुनः। लेती है और वृद्धा भी पुत्रोत्पन्न कर सकती है। द्विगुणैलक्ष्मीविलासः स्यादयं तैलसत्तमः ॥ ____ इसके अतिरिक्त यह तैल खुजली, पसीना, पञ्चपत्राम्बुना चाधो द्वितीयो गन्धवारिणा । विचचिका, दुर्गन्धि और कुष्ठको भी नष्ट करता है। तृतीयोऽपि च तेनैव पाको वा धूपिताम्बुना ॥)
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