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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारत - भैषज्य - - रत्नाकरः ११० छिले हुवे बीज, पवांड़ के बीज और बाबची समान भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर पाताल - यन्त्र से तेल निकालें । [ मकारादि | मन्दश्रवणबाधिय्यै कर्णरोगातिपीन से । हृद्रोगं गृध्रसीञ्चैव आमवातं कटिग्रहम् ॥ जङ्घीरुपादपृष्ठेषु पार्श्वशूलमतीव च । अन्त्रवृद्धयण्डवृद्धिश्च वातरक्तं सुदारुणम् | विश्वाचीखखपङ्गर्वाशीतिं वातजान्हरेत् । बलीपलितखालित्यं केशानां पतनं परम् || बलमांसकरश्चैव शुक्रवृद्धिकरं परम् । अपत्यजननं श्रेष्ठं गर्भिणीनां परं हितम् ॥ ८ सेर तेल नं. १ में ४ सेर तेल नं. २ हस्त्यश्वोष्ट्रा दिव्यायामैर्भग्नसन्धिप्रसाधनम् । मिलाकर सुरक्षित रक्खें । तैलमात्रोपयोगेन व्याधिर्निर्मूलतां नयेत् ॥ इसे लगानेसे कुष्ठ, खुजली, कृमि, पाक और सर्वातङ्क विनाशाय वृक्षमिन्द्राशनिर्यथा । महामाषमिदं तैलं कृष्णात्रेयेण पूजितम् ॥ विस्फोटक आदिका नाश होता है । (२) ४ सेर तिलके तेलमें १६ सेर पानी तथा १० तोले कूठका चूर्ण और ५ तोले स्वर्णक्षीरी (सत्यानाशी ) का कल्क मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाए तो तेलको छान लें । (५३०४) महामाषतैलम् ( ब. से. । वातव्या. माषद्रोणं समादाय अश्वगन्धामसारिणी । द्विपञ्चमूल्यात्मगुप्ता बला गन्धर्वहस्तकः || एषां दशपलान्भागान्वारिद्रोणे चतुष्टये । कामेभिः प्रकुर्वीत चतुर्भागावशेषितम् ॥ यष्टावदारुकुष्ठैलारास्नामांसीबलावचाः । शताह्वा चात्मगुप्ता च चाश्वगन्धा च चन्दनम्॥ शठचुरुबुकवृक्षाम्लत्र्यूषणागुरुश्चिकम् । सिन्धूद्भवं विदारीच प्रसारिणी शतावरी ॥ वृद्धदारुका तिबला विडङ्गसरलानि च । कल्कैरेतैः पलैर्भागैस्तैलाढकसमायुतैः ॥ क्षीरतुल्यं समायुक्तं शनैर्मृद्वमिना पचेत् । पाने बस्तौ तथाऽभ्यङ्गे नस्ये भोज्ये च पूजितम् अर्दिते कर्णशुले च शिरोरोगे हनुग्रहे । मुखरोगेषु सर्वेषु मन्यास्तम्भेऽपबाहुके || Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काथ - उड़द १६ सेर, असगन्ध, प्रसारणी, दशमूल, कौंच के बीज, बला (खरैटी) और अरण्ड - मूल ५०-५० तोले लेकर सबको एकत्र कूटकर १२८ सेर पानी में पकावें । जब ३२ सेर पानी शेष रहे तो छान ले I कल्क - मुलैठी, देवदारु, कूठ, इलायची, रास्ना, जटामांसी, खरैटी, बच, सोया, कौंच के बीज, असगन्ध, सफेद चन्दन, कचूर, अरण्डमूल, तितड़ीक, सोंठ, मिर्च, पीपल, अगर, पुनर्नवा, सेंधा, विदारीकन्द, प्रसारणी, शतावर, विधारामूल, अतिबला (कंधी), बायबिडंग और धूप सरल, प्रत्येक ५ -५ तोले लेकर सबको एकत्र पीस लें । ८ सेर तिलके तेलमें उपरोक्त काथ तथा कल्क और ८ सेर गायका दूध मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाए तो तेलको छान लें। आवश्यकतानुसार इसे पिलाने, भोजनमें खिलाने और इसकी बस्ति तथा नस्य देने एवं For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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