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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तैलमकरणम् ] तैलमें मिलाकर पकावें । जब सब पानी जल जाय तो तैलको छालें । इस तैलकी मालिशसे गुदाके मस्से नष्ट हो जाते हैं । ( नोट - कोई कोई वैद्य आकका दूध भी दन्तीमूलादिके बराबर लेते हैं । (३०८१) दशनफलादितैलम् (वै.म.र. | प. ११ ) दशनफलमवन्तिसोमके किञ्चिदुत्कथितशोधिते शृतम् । तीक्ष्णकल्कसहितं विनाशयेत्तै लमर्भककपाल जान् गदान् ॥ १ अनार के फलको जरा देर काञ्जी में पकाकर निकाल लीजिये और फिर उन्हें ८ गुने पानी में पकाकर छान लें | तत्पश्चात् उसमें उससे चौथाई | भाग तिलका तैल और तैलका चौथा भाग यवक्षार मिलाकर पकाइये । करञ्जशिग्रुकुटं च चिश्वा च वनशिम्बिका ॥ चित्रकं च पृथग्भागान् दत्त्वा चैषां पलोन्पितान् इलैष्मिकं सन्निपातोत्थं वातश्लेष्मभवं तथा ॥ कर्णशूलं शिरःशूलं नेत्रशूलं च दारुणम् । नष्ट होते हैं । (३०८२) दशपाकबलातैलम् पल-५० तोले), काथ ८ सेर । (२) ( वं. से.; वृ. मा.; वृ. नि. र.; च. द.; ग. नि । वातरता. ) बलाकषायकल्काभ्यां तैलं क्षीरचतुर्गुणम् । दशपाकं भवेत्तेन वाताग्वातपित्तनुत् ॥ धन्यं पुंसवनञ्चैव नराणां शुक्रवर्द्धनम् । रेतोयोनिवि कारघ्नमेतद्वातविकारनुत् ॥ इस तैलकी मालिशसे बच्चोंके शिरके रोग निहन्ति दशमूलाख्यं तैलमेतत्र संशयः ॥ काथ - (१) दशमूल १०० पल ( हरेक १० पानी ३२ सेर, शेष धतूरेका पञ्चाङ्ग १०० पल, पानी ३२ सेर, शेष का ८ सेर | (३) पुनर्नवा (साठी) २०० पल, पानी ३२ सेर, शेष काय ८ सेर । ( ४ ) संभालु १०० पल, पानी ३२ सेर, शेष काथ ८ सेर् । कल्क - बासा, बच, देवदारु, सठी ( कचूर ), रास्ना, मुलैठी, काली मिर्च, पीपल, सेठ, कलौंजी, कायफल करजबीज संहजनेकी १ लवलीति पाठान्तरम् । खरैटी का का ८ सेर, तैल २ सेर और दूध ८ सेर तथा खरैटीका कल्क २० तोले लेकर तृतीयो भागः । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ६९ ] सबको एकत्र मिलाकर पकायें । जब तैल मात्र शेष रह जाय तो उसको छान लें और फिर उसमें दुबारा उपरोक्त काथ, कल्क तथा दूध मिलाकर पकावें । इसी प्रकार इन्हीं चीजोंसे दश बार पकायें। यह तैल वातरक्त, वातपित्त, शुक्रदोष और योनिदोष नाशक तथा शुक्रवर्द्धक है । (३०८३) दशमूलतैलम् (बृहद्र) १. ( धन्व; भै. र. । शिरो. ) दशमूलीगतं ग्राह्यं तथा धत्तूरकस्य च । शतं पुनर्नवायाश्च निर्गुण्ड्याश्च शतं तथा ॥ एतैः कषायैर्विपचेत् कटुतैलाढकं भिषक् । वासा वचा देवदारु शटी रास्ना संयष्टिका ॥ मरिच पिप्पली गुण्टी कारवी कट्फलं तथा । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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