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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रसप्रकरणम् ] तृतीयो भागः । [ ६८१ ] रसकी सात सात भावना देकर सुखाकर सुरक्षित ताम्रका आठवां भाग शुद्ध बछनाग तथा पीपल, रक्खें । मिसरी, बायबिडंग, काला जीरा, असनावृक्षकी छाल और खरैटी में से प्रत्येकका चूर्ण ताम्रसे आधा मिलाकर सबको १ पहर भंगरे के रस में घोटकर पिट्टीसी बना लें और फिर उसे चिकने पात्र में रखकर मन्दाग्निपर इतना गर्म करें कि गोली बनाने लायक हो जाय । तब चनेके बराबर गोलियां बनाकर सुखा लें । इसमें से ६ रत्ती दवा जायफलको पानी में घिसकर उसके साथ देनेसे भयङ्कर सन्निपात ज्वर होता है। ज्वर छूटनेके पश्चात् रोगीको स्नान कराके दहीभात खांड मिलाकर खिलावें । (४९७१) भैरवी गुटिका (र. रा. सु. । ज्वरा. र. का. धे. । आगन्तुक ज्वरा.; वृ. नि. | सन्निपाता. ) शुद्धं स्रुतं द्विधा गन्धं मर्दयेद् भिक्षुकद्रवैः । दिनं भाव्यं च म च शोषयित्वा तु भृङ्गिजैः ।। चतुर्धा भावयेद्रावैस्तिलपर्ण्या द्रवैश्व तत् । भावनाभिश्च शोष्याथ चूर्णयेद्वस्त्रगालितम् ॥ चूर्णतुल्यं मृतं ताम्रं ताम्रादष्टांशकं विषम् । कृष्णा सिताविडङ्गानि कृष्णजीराशनं वला ॥ ताम्रार्द्धं प्रतिचूर्ण स्यात् सर्वमेकत्र कारयेत् । यामैकं भृङ्गिजेद्रवैर्मर्दयेत्कल्कतां गतम् ॥ स्निग्धभाण्डगत पाचयं पिण्डं यावत् कृशाग्निना । चणकाभा वटी योज्या चित्रकार्द्रक सैन्धवैः ॥ सम्यक् त्रिदोषजं हन्ति सन्निपातं सुदारुणम् । भैरव गुटिका ख्याता दध्यन्नं पथ्यमाचरेत् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन्हें चीता आर सेंधा नमक के चूर्ण तथा अदरक के रस के साथ खिलानेसे भयङ्कर सन्निपात वर नष्ट होता है । पथ्य - दही भात | (४९७२) भैरवी वटी (र. रा. सु. । अजीर्णा . ) तिन्तिडीकं विषं शुद्धं दग्वशङ्खं नियोजितम् । जातीफलं त्रुटितं सर्वमेकत्र कारयेत् ॥ रसगन्धं समरिचं निम्बूरसविमर्दितम् । चित्रकेन तु वारैकं वटिका माषमात्रका | देया यत्नेन सततं नाम्ना मन्दाग्निभैरवी । कासे श्वासे प्रतिश्याये विषरोगादिके ज्वरे ॥ सर्वरोगेषु विख्याता वटी भैरव सञ्ज्ञिता ।। शुद्ध पारा १ भाग तथा शुद्ध गन्धक २ भाग लेकर दोनों की कज्जली बनाकर उसे १ दिन तालमखानेके रस में घोटकर सुखा लें और फिर भंगरे तथा हुलहुलके रसकी ४-४ भावना देकर सुखा कर अच्छी तरह खरल करके कपड़छन चूर्ण बनावें । | नीबूके रस तथा चीतामूलके काथकी १-१ भावना तदनन्तर उसमें उसके बराबर ताम्र भस्म और | देकर १-१ माशेकी गोलियां बना लें । तिन्तडीक, शुद्ध वछनाग विष, शंखभस्म, जायफल, छोटी इलायचीके बीज, शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक और काली मिर्च समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य औषधियांका महीन चूर्ण मिलाकर सबको For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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