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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपकरणम्] तृतीयो भागः। [६७१] (४९५३) भीमरुद्रोरसः (१) । शुद्ध मनसिल, शुद्ध हरताल, काली मिरच, ( रसे. सा. सं.; र. रा. सु.; र. चं.; भै. र.। शुद्ध संखिया, शुद्ध हिंगुल, अपामार्ग ( चिरचिटे) विषा; र. र.; धन्व. । विषा.) | की जड़, धतूरेकी जड़, कनेरकी जड़ और सिरसकी सूतराजस्य तोलैक गन्धकस्य तथैव च। | जड़का चूर्ण समान भाग लेकर सबको एकत्र अभ्रात्कर्ष ततो देयं तोलैकं कान्तलौहकम् ॥ | धोटकर उसे रुद्राक्ष और कोयलके रसकी १००परोक्तेनौषधेनैव भावयेच्च पृथक् पृथक् । १०० भावना देकर मूंगके बराबर गोलियां विशालाहहतीब्राह्मीसौगन्धिकमुदाडिमैः॥ | बना लें। मर्कटयाश्चात्मगुप्तायाः स्वरसेन पृथक पृथक् । सांपके काटे हुवे मनुष्यको, और जिसने एतद्रक्तिकमानेन वटिकां कारयेभिषक् ।। विष पी लिया है उसे यदि बेहोशी हो गई हो वटीमेकां भक्षयित्वा पिबेच्छीतजलन्ततः।। और इन्द्रियां अपना काम न करती हो तो ये भीमरुद्रो रसो नाम चासाध्यमपि साधयेत् ।। गोलियां खिलानेसे विष नष्ट होता और पुनः चेतना कुक्कुरस्य शृगालस्य विषं हन्ति सुदुस्तरम् ॥ | आ जाती है । शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, अभ्रकभरम और | (४९५५) भुक्तद्रावीरसः कान्तलोहभस्म समान भाग लेकर सबकी कज्जली (यो. र. । अजीर्णा. ) बनाकर उसे १-१ दिन इन्द्रायनमूल, बनभण्टा, द्वौ क्षारौ टङ्कणं मूतं लवङ्गं लवणत्रयम् । ब्राह्मी, कमल, अनार, चिरचिटा (अपामार्ग) और पिप्पली गन्धकं शुण्ठी मरीचं पलसम्मितम् ।। काँचके रसमें धोटकर १-१ रत्तीकी गोलियां कर्षमेकं विषं दत्त्वा सूक्ष्मचूर्णानि कारयेत् । बना लें। ___ इनमेंसे नित्य प्रति १-१ गोली शीतल अर्कदुग्धस्य दातव्या भावना सप्तवासरम् ।। | अन्तधमं गजपुटे पक्त्वा शीतं समुद्धरेत् । जलके साथ सेवन करानेसे पागल कुत्ते और गीदड़का विष नष्ट हो जाता है। ततो लवङ्गमरिचस्फटिकीनां पलं पलम् ।। सर्व सम्पर्य दृढवद् दृढभाण्डे निधापयेत् । (४९५४) भीमरुद्रो रसः (२) सायं गुञ्जाद्वयं खादेमुक्तं द्रावयति क्षणात् ॥ (भै. र. । विषा.) पुनर्भोजनवाञ्छां च जनयेत्महरोपरि ॥ मनः शिलालमरिचैर्दारुणा दरदेन च । अपामार्गस्य हेम्नश्च हयमारशिरीषयोः॥ जवाखार, सञ्जीखार, सुहागा, शुद्ध पारद, मूलै रुद्राक्षतोयेन विष्णुकान्ताम्बुना ततः। लांग, सेंधा नमक, काला नमक, सांभर, पीपल, शतधा भावितैः कुर्याद वाटिका मुद्गसम्मिताः॥ शुद्ध गन्धक, सांठ और कालीमिर्च ५-५ तोले व्यालदष्टं पीतविष निरिन्द्रियमचेतनम् । और शुद्ध बछनाग विष १। तोला लेकर प्रथम पुनः सञ्जीवयेदेष भीमरुद्राभिधो रसः॥ | पारे गन्धक की कज्जली बनावें और फिर उसमें For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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