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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [६६८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [भकारादि एषां सत्त्वैः मलोन्मुक्तैर्मर्दितं विमलाभ्रकम्। । मर्दितं हि तदनु ताम्रनिर्मिते सहस्रपुटितं तत्र शतावर्या रसं क्षिपेत् ॥ धारयेच सकलं हि सम्पुटे । वारद्वादशकं दत्त्वा वटिकां कारयेद्भिषक् । मृतस्नया च परिवेष्टय सम्पुट भास्करामृतनामेदमम्लपित्तं नियच्छति ॥ पाचयेश्च सततं दृढामिना । शूलमन्नद्रवं शूलं शूलञ्च परिणामजम् ।। यामयुग्ममितमेव मात्रया छदि हल्लासमरुचिं तृष्णां कासश्च दुर्जयम् ॥ यन्त्रके हि कुरु शीतलं स्वयम् । हृद्ग्रहं कामलां रक्तपित्तं यक्ष्माणमेव च। । जायतेऽतिरुचिरो महारसो दाहं शोथं भ्रमि तन्द्रां विस्फोटं कुष्ठमेव च। पूर्ववद्भवति भास्करोदयः।। श्वासं मूच्र्छाश्च मन्दाग्निं यकृत्प्लीहोदरं तथा॥ | चित्रकाकरसेन योजितो सहस्रपुटी अभ्रकभस्मको बासा, गिलोय, राजयक्ष्मकफवातनाशनः॥ काला भंगरा, पित्तपापड़ा, नीमकी छाल, सफेद | शुद्ध हरताल, शुद्ध सोनामक्खी, शुद्ध गन्धक, भंगरा, नागरमोथा, सफेद पुनर्नवा, बनभण्टा, खरै- | शुद्ध पारा, शुद्ध मनसिल और कसीस समान भाग टीकी जड़ और शतावरीके स्वरस में १-१ दिन लेकर प्रथम पारे गन्धकको कज्जली बनावें और घोटकर अन्तमें शतावरके रसकी १२ भावना देकर फिर उसमें अन्य ओषधिर्या मिलाकर सबको बासा, (१-१ रत्तीकी ) गोलियां बना लें। अदक और तुलसीके रसमें एक एक दिन घोटइनके सेवनसे साधारण शूल, अन्नद्रव शूल, कर गोला बनावें और उसे ताम्रके सम्पुट में बन्द परिणाम शूल, छर्दि, जी मिचलाना, अरुचि, तृष्णा, | करके उसपर ४-५ कपडमिट्टी करके लवणयन्त्र कष्टसाध्य खांसी, हृद्ग्रह, कामला, रक्तपित्त, राज में २ पहर तक तीवाग्निपर पकावें । जब यन्त्र यक्मा, दाह, शोथ, भ्रम, तन्द्रा, बिस्फोटक, कुष्ठ, स्वांग शीतल हो जाय तो सम्पुटमें से औषधको श्वास, मूर्छा, मन्दाग्नि, यकृत्, प्लीहा और उदर निकालकर पीसकर रक्खें। रोग नष्ट होते हैं। इसे अद्रक और चीतेके रसके साथ सेवन (४९४७) भास्करो रसः (१) करनेसे राजयक्ष्मा,कफ और वायु नष्ट हो जाता है। (र. प्र. सु. । अ. ८) ( मात्रा-१-२ रत्ती) तालं ताप्यं गन्धकं सूतकं च | (४९४८) भास्करो रसः (२) शिलाई वै खेचरं चेत्समं हि । (मै. र. । अग्निमान्द्या.; र. रा. सु. । अजीर्णा.) चूर्ण कृत्वा चाटरूषेण मधु विषं मूतं फलं गन्धं त्र्यूषणं टङ्गजीरकम् । साणैवं सौरसाया रसेन ॥ J एकैकं द्विगुणं लौह शङ्खमभ्रं वराटकम् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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