SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 644
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तैलमकरणम् ] तृतीयो भागः। [६४९ ] (४८८९) भूधाच्यादितैलम् काथ-दशमूल (समान भाग-मिलित), ( वै. म. र. । पटल १६) कुलथी, सूखी मूली, सहजनेकी छाल और भरंगी भूधात्रीमूलसिद्धं पयसि तिलभवं २०-२० तोले लेकर सबको अधकुटा करके ८ लेपनेनाशु हन्या सेर पानीमें पकावें और २ सेर पानी शेष रहनेपर दुष्ट स्रावाट्यमुग्रं व्रणमणुसुषिरं छान लें। दीर्घकालानुषक्तम् ॥ __अन्य द्रव पदार्थ---भंगरेका रस २ सेर, अदरकका रस २ सेर और गोमूत्र २ सेर । भुईआमलेकी जड़का कल्क २० तोले, कलकदेवदारु. बच. कठ. सोया, सेंधा दूध ८ सेर और तिलका तेल २ सेर लेकर सबको नमक, काला नमक, विडनमक, हींग, तुम्बरु एकत्र मिलाकर पकावें । जब तैलमात्र शेष रह (नेपाली धनिया), सोंठ, मिर्च, पीपल, अजवायन, जाय तो उसे छान लें। सफेद जीरा, काला जीरा, चीता, पीपलामूल, हर्र, इसे लगानेसे दुष्ट, स्रावयुक्त और छोटे छिद्र | बहेड़ा, आमला, भंगरा, कायफल और चीतामूल वाले पुराने धाव नष्ट हो जाते हैं। समान भाग-मिश्रित २० तोले लेकर कल्क बनावें। विधि-२ सेर सरसे के तैलमें उपरोक्त काथ, (४८९०) भृगराजतैलम् (१) समस्त द्रव पदार्थ और कल्क मिलाकर पकावें । (व. से. । कासा.) जब तैलमात्र शेष रह जाय तो उसे छान लें । भृङ्गराजरसपस्थं शृङ्गबेररसं तथा । ___ इसे पान और नस्य द्वारा सेवन करानेसे कटुतैलस्य च प्रस्थं गोमूत्रप्रस्थसंयुतम् ॥ वात कफज खांसी, प्रतिश्याय, पीनस, श्वास तथा दशमूलकुलित्थाश्च शुष्कमूलकशिग्रुकम् । अन्य कफज रोग नष्ट होते हैं। भाी च कुडवांशानि काथयेत्सलिलाढके । । (१८९१) भृगराजतलम् (२) पादशेषेण तेनापि कल्कं दत्वा विपाचयेत् । (हा. सं । स्था. ३ अ. २३ ) देवदारुवचाकुष्ठं शताहालवणत्रयम् ।। भृङ्गराजरसं चैव कटुतुम्बीरसं तथा । हिङ्गतुम्बुरुणी व्योषं यवानी जीरकद्वयम् । । सौवीकरसं चैव काथं वै दशमूलकम् ॥ चित्रकं पिप्पलीमूलं वरो भृङ्गरजस्तथा ॥ माषकुल्माषयूषं च तथाजं दधि मिश्रयेत् । कट्फलं चित्रकश्चैव समभागानि कारयेत । | समांशकानि सर्वाणि तैलं चाध प्रयोजयेत ॥ सम्यक् सिद्धञ्च विज्ञाय पाने नस्ये प्रयोजयेत्।। मृद्वग्निना पाचनीयं सिद्धं चैवावतारयेत् । वातश्लेष्मात्मके कासे प्रतिश्याये च पीनसे। | अभ्यङ्गे च प्रयोक्तव्यं न पाने बस्तिकर्मणि ॥ श्वासरोगेषु सर्वेषु कफवातात्मकेषु च ॥ पूरणं कर्णरोगेषु शिरःशूले च दारुणे । तैलं त्विदं भृङ्गराज कफव्याधिविनाशनम्॥ । अर्धशीर्षविकारेषु भ्रवः शङ्काक्षिशूलके ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy