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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [४९७] तत्पश्चात् उस रसकी पोटलीको ठण्डे पानीके। इसके सेवनसे आयु, बल, कान्ति और वीर्यघड़ेमें डाल दें और एक दिन उसीमें पड़ा रहने की वृद्धि होती है । दें। फिर उसे १ दिन भैसके दहीमें डाले रक्खें। (४४२०) पुनर्नवामण्डूरम् (१) वस रस तैयार है। (वृ. नि. र.; भा. प्र.; र. रा. सु. । पाण्ड.) __इसमें से ३ रत्ती रस नित्य प्रति १ मास तक पुरुषको खाना चाहिये तथा आहारमें दूध पुनर्नवा त्रिद्वयोपं विडङ्गं दारु चित्रकम् । भात और खांड खानी और ब्रह्मचर्यका पालन कुष्ठं हरिद्रा त्रिफला दन्ती चव्यं कलिङ्गकम् ॥ करना चाहिये। कटुका पिप्पलीमूलं मुस्तं शृङ्गी च कारवी । __साथ ही स्त्रीको भी ३ रत्तीकी मात्रानुसार यवानी कट्फलश्चेति पृथक् पलमितं समम् ॥ त्रिफला, नीम और कपासके काथके साथ ७ मण्डूरं द्विगुणं चूर्णाद्गोमूत्रेऽष्टगुणे पचेत् । सप्ताह तक सेवन करना चाहिये । एवं ऋतुकाल में गुडेन वटकान् कृत्वा तक्रेणाऽऽलोड्य तान् पिबेत् ।। ३ दिन तक केवल कपास के क्वाथ में मिश्री मिलाकर उसके साथ सेवन करना चाहिये । पुनर्नवादिमण्डूरवटकोऽश्विविनिर्मितः । फिर सुहागा, फटकी और पांग्को एकत्र घोटकर पाण्डुरोग निहन्त्याशु कामलाश्च हलीमकम् ॥ श्वासं कासश्च यक्ष्माणं ज्वरं शोथं तथोदरम् । पक्की इमलीके रसमें मिलाकर उसमें थोडासा शहद शूलं प्लीहानमाध्मानम सि ग्रहणी कृमीन् । डालकर स्त्रीको अपनी योनिमें ३ दिन तक उसका | लेप करना चाहिये । इससे योनि शुद्ध हो | वातरक्तश्च कुष्ठश्च सेवनान्नाशयेद् ध्रुवम् ॥ जाती है। पुनर्नवा, निसोत, सेांठ, मिर्च, पीपल, बाय__इसके बाद ३ माशे उपरोक्त रसको प्रातः- बिडंग, देवदारु, चीता, कृठ, हल्दी, हरे, बहेड़ा, काल भैसके दहीमें मिलाकर रख देना चाहिये आमला, दन्तीमूल, चव, इन्द्रजी, कुटकी, पीपलाऔर रात्रिको स्त्री-समागमके समय पुरुषको यह मूल, नागरमोथा, काकड़ासिंगी, कालाजीरा, अजरस दही समेत खा लेना चाहिये । तदनन्तर गर्भा - वायन और कायफलका चूर्ण ५-५ तोले तथा धान करके स्त्री पुरुष दोनों को आध पहर तक शुद्ध मण्डूर इन सबसे २ गुना लेकर सबको आठ वैसे ही रहना चाहिये। गुने (१६ गुने ) गोमूत्र में पकावें । जब सब चीजें यदि इसके सेवन से तापादि हो तो द्राक्षाका अच्छी तरह मिल जायं और पाक तैयार होनेमें रस और मिसरी आदिका सेवन करना चाहिये थोड़ी कमी हो तो उसमें सबके बराबर गुड़ मिलातथा स्त्रीको शीतल उपचार करने चाहिये। कर पकावें । जब गाढ़ा हो जाय तो (२-२ इस प्रयोगसे समस्त शुभ लक्षणयुक्त पत्र । माशेकी) गोलियां बनाकर सुरक्षित रक्खें । उत्पन्न होता है। इन्हें तनके साथ सेवन करनेसे पाण्डु, कामला, For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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