________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[४६६]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[पकारादि
मृतःमूतो भवेत्सद्यो सर्वयोगेषु योजयेत् । । रसमें एक एक दिन घोटें और फिर उस कल्कशुद्ध पारदको काले धतूरेके बीजेोके तेल को एक कपड़े पर लपेट कर उसकी बत्ती
बना लें। और नियामक ओषधियोंके स्वरसमें १-१ रोज़ मर्दन करके १ दिन कच्छपयन्त्रमें पकानेसे उसकी
मत्स्याक्षी यमचिश्चा हरिद्रे द्वे पुनर्नवाद्वितयम् ॥ भस्म हो जाती है।
धुस्तूरः काकजसा शतावरी कञ्चुकी चैव (४३५०) पारदभस्मविधिः (१३)
वन्ध्या । तिलभेकपर्णीके दुर्वा मूळ हरीतकी तुलसी॥ (कृष्णभस्म )
गोकण्टकाखुपयौँ कर्कटीकन्दवर्गलता च । (र. सा. सं.; र. रा. सु. । पूर्वखण्ड)
मूसली हिज गुडूची शिग्रु गिरिकर्णिका महाराष्ट्री धान्याभ्रकं रसं तुल्यं मारयेन्मारकद्रवैः। दिनैकं तेन कल्केन वस्त्रं लिप्त्वा तु वर्तिकाम् ।।
| मार्कवसैन्धवसरणौ सोमलता श्वेतसर्षपासनश्च। विलिप्य तैलैवेति तामेरण्डोत्यैः पुनः पुनः।।
हंसपदीव्याघ्रपदीकिंशुकभल्लातकेन्द्रवारुणिका ॥ प्रज्वाल्य तदाज्यभाण्डे गृह्णीयात्पतितश्च यत् ।।
सर्वश्चादीशं वा अष्टादशाधिका वापि द्रव्यम् । कृष्णभस्म भवेत्तच्च पुनर्मथै नियामकैः ।
समारणमूर्छादौ च युक्तिविधिवदुपयोज्यम्॥ दिनैकं पातयेद्यन्त्रे कन्दुकाख्ये न संशयः॥
| नागरमोथा, बच, चित्ता, गोखरु, कड़वी, मृतः मूतो भवेत्सत्यं तत्तद्रोगेषु योजयेत् ।।
| तूंबी, दंती, चमेली, नाकुलीकंद, सरफेका, धीकुश्वेतं पीतं तथा रक्तं कृष्णश्चेति चतुर्विधम् ।।
| मार, चाण्डालनीकंद, विषमुष्टी ( डोडी ), वज्रवल्ली लक्षणं भस्ममूतानां श्रेष्ठं स्यादुत्तरोत्तरम् ॥
( हडफोड़ी), लाजवन्ती, बंदालडोडा, लाख,
सहदेवा (शारिवा ), नीप ( कदंब ), पीपल, धान्याभ्रक और शुद् पारा समान भाग
संभालु, चक्र ( तगरपुष्प या पनवाड़), लांगलीकंद, लेकर दोनोंको एकत्र घोटकर मारक, द्रव्योंके
मानकंद, आक, चंद्ररेखा ( बाबची ), रविभक्ता (१) मारकगणः । ( हुलहुल ), काकमाची, श्वेतार्क, विष्णुक्रांता घनवचाचित्रकगोक्षुरकटुतुम्बीदन्तिकाजाति । ( कोयल ), कौवाडोडी, वज्री ( थोहर ), बला, साक्षी शरपुडा कन्या चाण्डालिनीकन्दम् ॥ सोंठ, कड़वी तोरी, जयंती, वाराहीकंद, हाथिशुण्डी, विषमुष्टिवज्रवल्ल्यौ लज्जा देवदाली लाक्षा। केलाकंद, मत्स्याक्षी, यमचिंचा ( खट्टी इमली ), सहदेवा नीपकणा निर्गुण्डी चक्रं लाङ्गलिका ।। हलदी, दारुहल्दी, लाल पुनर्नवा, श्वेत पुनर्नवा, माणार्कचन्द्ररेखा रविभक्ता काकमाचिका चार्कः। धतूरा, काकजंघा, शतावर, कंचुकी ( क्षीरीवृक्ष ), विष्णुक्रान्ता वायसतुण्डी वत्री बला शुण्ठी चैव ॥ बांझककोड़े की जड़, तिल, मण्डूकपर्णी (ब्राह्मी), कोपातकी जयन्ती वाराही इस्तिशुण्डिका दूर्वा, मूर्वा, हरड़, तुलसी, गोखरु; मूषाकर्णी,
रम्भा। कर्कटीकंद, वर्गलता, (पाठा), मूसली, हींग, गिलोय,
For Private And Personal Use Only