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भारत - भैषज्य - रत्नाकरः ।
[ पकारादि
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| शुक्र तो रस, रक्त, मांस, मेदस, अस्थि, मज्जा, इन छः धातुओंका सार हुवा करता है, और आतव तो शरीरका विकारस्वरूप है । इसलिये समगुण अभ्रकप्रासको जीर्ण करके पारद, शतगुणगन्धकजीर्ण - पारदसे भी बलवान् होता है । तात्पर्य्य यह है कि गन्धकजारणकी अपेक्षा अभ्रकसत्त्वजारण कहीं अधिक गुणकारी है। वज्राभ्रक में नागात्रक, दर्दुराभ्रक, पिनाकाभ्रक की अपेक्षा अधिक सत्त्व हुवा करता है । यद्यपि मैं अभ्रकसे सत्वको जुदा निकालकर अभी तक पारदमें जीर्ण नहीं कर सका हूँ किन्तु कृष्णवज्राभ्रककी भस्मके साथ विडयोगसे पारदको घोट घोटकर मैने परीक्षा की है तो षड्गुणगन्धक जीर्ण पारद से उसमें कहीं अधिकगुण अनुभूत किया है | इसवास्ते सभी वैद्यराजांसे भी हमारी प्रार्थना है कि अभ्रकसे सत्व निकालकर बिडयोगसे पारदमें यदि उसको जीर्ण करेंगे तो पारद प्रचण्डबुभुक्षित होकर सुवर्णादि सर्वधातुओंको जीर्ण करसकेगा और उस क्रियासे अन्य लोग भी उत्तम फल उठावेंगे । “प्रिया मे मानुषी प्रजा इस श्रुतिके अनुसार जब हमको भगवत्प्रिय मनुष्यजन्म मिला है तो इसके सम्बन्धसे अवश्य कुछ असाधारण कार्य करना चाहिये इसलिये मेरा यह मन्तव्य है कि इश्वरके समान चराचर व्यापि पारदकी यदि निरन्तर सेवा की जाय तो ऐहलौकिक तथा पार लौकिक अनन्तसुख बहुत दूर नहीं है। यह सर्वविद्वत्संवादी सिद्धान्त है कि जिसका जन्मान्तरमें भारी कल्याण होनहार होता है वही पुरुष जगत्कल्याणकारी पदार्थों में मनोयोग दिया करता है।
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तात्पर्य यह है कि पारलौकिक फलका भागी वही
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बाद फिर कांजी और प्रतिसारणीय क्षारके योगसे जब अभ्रकसत्व पचजाय तब स्वाङ्ग शीतल करके डमरूयन्त्रसे सब चीजोंको निकाल ले इस प्रकार चार छः बार घोटकर डमरूयन्त्रमें उड़ाने से अभ्रकका सब सत्त्व जीर्ण हो जायगा । परन्तु जो पारद के साथ उक्तविधिसे अभ्रकका सत्त्व जीर्ण किया जायगा तो “नाधः पतति न चोर्ध्वम्” इत्यादि रसहृदयग्रन्थके प्रमाणसे पारद छिन्नपक्ष हो जायगा (अनि डालने परभी नहीं उड़ेगा ) और यदि उक्त विधिसे पारदको अभ्रक भस्मके साथ घोटा जायगा तो पारद छित्रपक्ष नहीं हो सकेगा किन्तु अति बलिष्ठ अवश्य होगा । इसमें हेतु यह है कि अभ्रक भस्मके साथ पारदको घोटकर उड़ानेसे पारदको अभ्रकसत्वका उतना ग्रास नहीं मिल सक्ता जिससे कि वह छिन्नपक्ष हो, क्योंकि अभ्रक भस्ममें थोड़ा सत्व होता है उतने प्राससे पार - दकी तृप्ति नहीं हो सकती। इसमें युक्ति यह है कि जैसे कोई भूखा मनुष्य आध सेर अन्न खाता है उसको यदि छटांक भर अन्न दिया जाय तो कुछ आधार मात्र होगा। पर्याप्त भोजन जन्य आलस्य निद्रादि नहीं आ सक्ते । यद्यपि पारदमें गन्धक जीर्ण करनेसे भी वह बलवान् होता है परन्तु अभ्रकसत्व- जीर्ण पारदका मुकाबिला नहीं कर सकता, क्योंकि शास्त्रकार महर्षियोंने गन्धकको सो पार्व्वतीजीका आर्त्तव माना है और अभ्रकको उनका शुक्र माना है, शिवशुक पारदकेलिये पार्व्वतीजीका रज और शुक्र दोनोंही प्रिय हैं, परन्तु पुरुषका शुक्र जितना स्त्रीके शुकसे बलिष्ठ होता है उतना आर्त्तवसे बलिष्ठ नहीं हो सकता, क्योंकि
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