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[४४२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[पकारादि ___ नोट-उपरोक्त प्रमाणसे बनी हुई गुटिका । अभ्राचतुष्पलं चूर्णमेकीकृत्वाकाम्बुना।। में लगभग १ माशा कज्जली आती है जो बहुत त्रिफलापयसा भाव्या कोलार्द्धमानकी वटी । अधिक है अत एव ४-४ रत्तीकी गोलियां
| भक्तोदकानुपानेन सेव्या वहिपदीपनी । बनानी चाहिये।
| अम्लपित्तामवातादीन्हन्ति पयसान्नभोजनम् ।। (४३२२) पाण्ड्वरिरसः
शुद्र पारा और शुद्ध गन्धक १-१ कर्ष (र. रा. सुं.; वृ. नि. र. । पाण्ड.: रसें. चिं. (१०-११ तोला); बायबिडंग, कालीमिर्च, अद
रक, हरे, बहेड़ा, आमला, निसोत, चीतामूल, म. । अ. ९)
पीपल, दन्तीमूल, पुनर्नवा ( बिसखपरा-माटी) रसगन्धाभ्रलोहैक्यं पाण्ड्वरिः पुटितस्त्रिधा।
थोहर (सेंड) का दूध, मानकन्द, हड़संघारी, कुमार्याक्तश्चतुर्वल्लः पाण्डुकामलपूर्वनुत् ॥
| यवक्षार, कूट और खांड ५-५ तोले तथा अभ्रक शुद्ध पारा, शुद्ध गधक, अभ्रक भस्म और | भस्म २० तोले लेकर चूर्ण योग्य चीजेका महीन लोहभस्म समान भाग लेकर सबको घीकुमार | चूर्ण बनाकर सबको एकत्र मिलाकर उसमें ५ तोले ( ग्वारपाठे ) के रसमें घोटकर टिकिया बनाकर | गर्म पानो और ५ तोले घी मिलाकर घोटें तदनसुखा लें और शरावसम्पुट में बन्द करके लघुपुटकी । तर उसे अद्रकके रस, त्रिफलेके काथ और दूधको आंच दें । इसी प्रकार ग्वारपारे के रसमें घोटकर १-१ भावना देकर आधे आधे तोलेकी गोलियां तीन पुट दें।
बना लें। इसे १२ रत्तीकी मात्रानुसार सेवन करनेसे इन्हें कालीके साथ सेवन करनेसे अग्नि पाण्डु और कामला का नाश होता है। दीप्त होती और आमवात तथा अम्लपित्तादिका ( व्यवहारिक मात्रा २ रत्ती ।) नाश होता है। पानीयकुमाररस:
पथ्य- दूध भात । " पानीयवटिका (सिद्धफला) ” देखिये । । (व्यवहारिक मात्रा--१ माशा तक) (४३२३) पानीयभक्तवटी (१) (४३२४) पानीयभक्तवटी (२) (मध्यम) (वं. से. । रसायन.)
(भै. र. । अम्लपि.; र. र.; र. का. धे.; र. चि. शुद्धौ गन्धरसौ कर्फ विडङ्गमरिचाईकाः । म.; र. सा. सं. । ग्रह.; रसें. चि. म. । त्रिफलात्रिहतावह्निः कणा दन्ती पुनर्नवा ॥
अ. ९) स्नुक्क्षीरं मानकुलिशयावाग्ररोगखण्डिकाः । कृष्णाभ्रलोहमलकुष्ठविडङ्गचूर्ण प्रत्येकैकं पलं चूर्णमुष्णपानीयकं हविः ।।। प्रत्येकमेकपलिकं विधिवद्विधाय ।
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