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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् तृतीयो भागः। [४३७] सप्तधा ॥ (४३११) पर्पटीरसः (४) ( मल्लपर्पटी) । मन्दी मन्द। आंचसे लोहेकी कढ़ाई में पकावें । (सि. भे. म. । ज्वर.) जब गोमूत्र सूख जाय तब इन भस्मांकी बराबर राले चतुःपलमिते द्रावितेऽग्नियोगा- (१६ तोले ) हंसमण्डूर मिलाकर कपड़ छन त्सम्मेल्य शुक्ल विषमर्धपलप्रमाणम् । करलें । इसकी मात्रा ३ मासे से छः मासे तक खल्वे क्षिपेत्सपदि पपेटिका रसोऽयं, गौकी छाछके साथ सेवन कर तो पाण्डुरोग और ___ हन्यात्कफानिलमतिभ्रमवान्तिवेगान् । हलीमक रोग नष्ट हे। ( रसायनसार ) २० तोले रालको अग्निपर पिघलाकर (४३१३) पाण्ड्डकुठाररसः१ उसमें २॥ तोले शुद्ध. संखियेका चूर्ण मिलाकर (र. प्र. सु. । अ. ८; रसें. चिं. म. | अ. ९; अच्छी तरह घोटें। वृ. नि. र.; र. रा. मुं. । पाण्डु.) इसके सेवनसे कफ, वायु, मतिभ्रम और वमनका नाश होता है तथा ज्वरका वेग रुक गन्धकाभ्ररसलोहभस्मकं शाल्मलीमुसलिकाजाता है। ___ गुडूचिभिः । भावयेत्रिफलकाकन्यकावह्निशक्रजरसैश्चर ( नोट----इसे बनाने और सेवन कराने में बहुत सावधानी रखनी चाहिये । रालमें संखियेको मिलाकर खूब घोटना चाहिये कि जिससे दोनों जायते हि भुविजोऽमृतस्रवः प्लीहपाण्डुविनिचीज़ों के परमाणु अच्छी तरह मिल जायं । इसे वृत्तिदायकः। अधिकसे अधिक आधी रत्ती मात्रामें देना चाहिये वल्लयुग्मपरिमाणतस्त्वयं लेहितश्च घृतमाक्षिऔर जिस शीशी में रक्खें उस पर “ विष" शब्द कान्वितः॥ लिख देना चाहिये। शोफपाण्डुविनिवृत्तिदायकः सेवितश्च यवचि चिकाद्रवैः ॥ (४३१२) पाण्डुकथाशेषरसः शुद्ध गन्धक, अभ्रक भस्म, शुद्ध पारा और ( रसायनसार । पाण्डुरो.) लोहभस्म समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धक तुत्थताम्राभ्रलोहानां वस्त्रपूतेषु भस्मसु ।। की कजली बनावें और फिर उसमें अन्य चीजें तुल्यहारिद्रचूर्णपु गोमूत्रं पड्गुणं पचेत् ॥ मिलाकर सबको सेंभलकी छाल, मूसली, गिलोय, हंसमण्डूरतुल्यं तद् गव्यतक्रेण चेद्भजेत् । त्रिफला, अद्रक, घीकुमार, चीता और इन्द्रजौके पाण्डुईलीमकं चापि कथामात्रेण शिष्यते ॥ काथकी सात सात भावना देकर रक्खें । तूतिया, तांबा, अभ्रक, लोह; इन चारों -रसेंद्रचिन्तामणि इत्यादि में इसे “ पाण्डुनिग्रह" चीजोंकी कपड़छन की हुई २-२ तोले भस्मों में | नामसे लिखा है। ८ तोले हल्दी का चूर्ण मिलाकर सवा सेर गोमूत्रमें । २- शिग्रुजरनैश्चेति पाठान्तरम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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