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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् ] तृतीयो भागः। [४२७] दशमूल-खम्भारी, कटेली, पाढल, बड़ी । सप्तवारं ततो युभुयाद्वातरक्ते त्रिवल्लकम् । कटेली ( कटेला ), अरणी, अरल, शालपर्णी, बेल, कोकिलाक्षस्य मूलानां पानीयमनुपाययेत् ॥ गोखरु और पृष्टपर्णी ! विधिवत् शुद्ध पारा १ भाग, शुद्ध गन्धक (४२९०) पश्चामृतरसः (५) १ भाग, अभ्रक भस्म २ भाग, शुद्ध गूगल ४ ( भै. र. । कास.) भाग और गिलोयका सत्व ८ भाग लेकर प्रथम पारे और गन्धककी कज्जली बनावें और फिर शुद्धस्तस्य भागैकं भागौ द्वौ गन्धकस्य च । उसमें अन्य औषधे मिलाकर सबको संभालु, गोखरु, भागद्वयं मृतं तानं मरिचं दशभागिकम् ॥ गिलोय और तालमखानेकी जड़के काथकी पृथक् मृताभ्रस्य चतुर्भागं भागमेकं विषं क्षिपेत् । पृथक् सात सात भावना देकर ९-९ रत्तीकी अम्लेन मर्दयेत्सर्व मापैकं वातकासनुत् ॥ । गोलियां बना लें। अनुपानं लिहेत्सौदैविभीतकफलत्वचम् ।। इन्हें तालमखानकी जड़के काथके साथ शुद्ध पारा १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग, सेवन करनेसे वातरक्तका नाश होता है । ताम्रभस्म २ भाग, कालीमिर्चका चूर्ण १० भाग, अभ्रक भस्म ४ भाग तथा शुद्ध बछनागका चूर्ण । (४२९२) पञ्चामृतरसः (७) १ भाग लेकर, प्रथम पारे गन्धकी कज्जली | ( र. र. स. । राजय अ. १४; र. चं.; र. र.; बनावें और फिर उसमें अन्य औषधे मिलाकर __ वृ. नि. र. । राजय.) सबको नीबूके रसमें धोटकर १-१ माशेकी सममृताभ्रलोहानां शिलाजतु विषं समम् । गोलियां बना कर रख छोड़ें! गुडूचीत्रिफलाकाथैः शोधितं गुग्गुलं तथा ॥ इनमें से १-१ गोली शहदमें बहेड़े का मृतं नेपालतानं च मूतस्थाने नियोजयेत् । चूर्ण मिलाकर उसके साथ सेवन करने से वातज एकीकृत्य द्विगुझं तद्भक्षयेद्राजयक्ष्मनुत् ॥ खांसी नष्ट होती है। पञ्चामृतरसो नाम ह्यनुपानं च पूर्ववत् । ( व्यवहारिक मात्रा ४ रत्ती) हरेत्क्षीराजगन्धाभ्यां जयन्ती वा क्षयापहा॥ (४२९१) पञ्चामृतरसः (६) पारद भस्म, अभ्रक भस्म और लोह भस्म (यो. र. । वा. र.; वृ. नि. र. । वातर.) १-१ भाग तथा शुद्ध शिलाजीत, शुद्ध बछनाग पारदं च क्रियाशुद्धं तत्तुल्यं शुद्धगन्धकम् । और गिलोय तथा त्रिफलेके काथमें शुद्ध गूगल अभ्रकं तु द्वयोस्तुल्यं त्रिभिस्तुल्यस्तु गुग्गुलुः ॥ ३-३ भाग लेकर सबको एकत्र धोटकर २-२ सर्वाशममृतासत्वं भावयेदौषधैः पृथक् । रत्तीकी गोलियां बना लें । निर्गुण्डीगोक्षुरछिन्नाकोकिलाक्षाडिजे रसः।। । इन्हें बनतुलसीके रस और दूधके साथ अथवा For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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