SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 406
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [४११] पञ्चवक्त्रो रसो नाम द्विगुञ्जः सन्निपातजित् । | कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियों अर्कमूलकषायं तु त्र्यूषणं चानुपाययेत् ॥ . का महीन चूर्ण मिलाकर सबको १ दिन धतूरेके युक्तं दध्योदनं पथ्यं जलयोगं च कारयेत् । रसमें घोटकर सुखालें । ( १-१ रत्ती की गोलियां रसेनानेन शाम्यन्ति सक्षौद्रेण कफादयः॥ बनाकर छायामें सुखालें।) मधु त्वरसं चानु पिबेदनिविद्धये। इसे शहदके साथ खिलाकर ऊपरसे आककी यथेष्टं घृतमत्त्याशु दीप्तो भवति पावकः॥ | जड़की छालके काथ में त्रिकुटा ( सांठ, मिर्च, शुद्ध पारा, शुद्ध विष ( मीठातेलिया ), शुद्ध | पिप्पल ) का चूर्ण मिलाकर पीनेसे सन्निपात तथा गन्धक, काली मिर्च, सुहागेकी खील, और पीपल । कफादि नष्ट होते हैं। सब चीजें समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी अग्निकी वृद्धिके लिये इसे अर्कमूलके रस तीबज्वरे महाघोरे पुरुषे यौवनान्विते । | (या काथ ) और शहद के साथ खाना चाहिये। पूर्णमात्रा प्रदातव्या पूर्ण वटीचतुष्टयम् ॥ | तथा आहारके साथ यथेष्ट घृत खाना चाहिये । स्त्रीबालवृद्धक्षीणेषु अर्द्धमात्रा प्रकीर्तिता। पथ्य---दही भात । यदि अधिक सन्ताप अतिवृद्धे च क्षीणे च शिशौ चाल्पवयस्यपि ॥ हो तो मस्तक पर शीतल पानी डालना चाहिये । तुय्येमात्रा प्रदातव्या व्यवस्था सारनिश्चिता। पञ्चवक्त्ररसः (३) नवज्वरं महाघोरं यामैकान्नाशयेधुवम् ॥ (र. सा. सं.; र. रा. सु.; र. का. धे. । ज्वर.) मध्यज्वर तथा जीर्ण त्रिरात्रानाशयेदध्रुवम् । प्र. सं. ४२६५ में और इसमें केवल इतना सप्ताहात्सनिपातोत्थं ज्वराजीर्णकसंज्ञकम् ॥ ही अन्तर है कि इसमें विषके स्थानमें सीसा भस्म वासज्वर में दहीके पानीके साथ, घोर सन्नि- पड़ती है । गुण, अनुपानादि लगभग समान पात में अद्रक के रसके साथ, अजोर्ण उवर में ही हैं । जम्बीरीके रसके साथ तथा विषमज्वर में जीरे के | चूर्ण और गुड के साथ देना चाहिये । (र. चि. । अ. ९; वृ. नि. र.; भै. र.; भा. प्र.। सन्निपात.; वृ. यो. त. । त. ५९) महाघोर तीव्र ज्यर में पूर्ण युवा पुरुष को यह भी प्र. सं. ४२६५ के समान ही है। इस की ४ गोली, स्त्री बालक वृद्ध और क्षीण | केवल इतना ही अन्तर है कि इसमें पीपल पुरुष को २ गोली और अत्यन्त वृद्ध, अत्यन्त क्षीण नहीं पड़ती। तथा छोटे बालक को १ गोली देनी चाहिये । । (४२६६) पञ्चशरोरसः यह रस भयङ्कर नवीन ज्वर को १ प्रहर में, (भै. र.; र. रा. सु. । वाजीकरण.) मध्य ज्वर और अजीर्ण ज्वर को तीन दिन में और | रसेन सह शाल्मलिजेन सूतं । सन्निपात ज्वर को सात दिन में नष्ट कर देता है। । त्रिसप्तवाराणि बलिं विपर्य । पञ्चवक्त्ररसः (४) For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy