SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसमकरणस] वृवीयो भागः। [४०९] कृष्णाहरेश्चन्दनतोयभाव्याः । पञ्चलोहं पञ्चरसं वर्तुलं भर्तमित्यपि । प्रत्येकमेकस्य च सप्त सप्त । व्यञ्जनं सूपमन्यच्च तद्भाण्डे साधितं शुभम् ॥ दर्पण चैकां च ददीत भावनां आदौ तैलादिके शोध्यं पश्चात्तप्त्वाऽजमूत्रके। सिद्धो रसः स्यादिति पश्चवाणः॥ | निषिक्तं शुद्धिमायाति पञ्चलोहं न संशयः॥ वीर्यस्य वृद्धिं च करोति पुंस्त्वं अर्कक्षीरेण सम्पिष्टगन्धतालकलेपनात् । नष्टेन्द्रियाणां हि मुखावहश्च । पश्चकुम्भिपुटैर्भत म्रियते योगवाहकम् ॥ येषां गृहे चागणिता रमण्य ___ कासी, पीपल, तात्र, सीसा और बंगको ____ स्तेनैव कार्यों रसराज एषः॥ एकत्र पिघलाने से जो धातु तैयार होता है उसे कान्तापियत्वं बहुशुक्रतां पश्चलोह, पश्चरस, वर्तुल, भर्त, व्यञ्जन और सूप च शेफाभिवृद्धि दृढतामुपैति ॥ कहते हैं। शुद्ध पारा, अभ्रक भस्म, सीसा भस्म, लोह प्रथम इसे पिघला पिघला कर तैलादि (तैल, भस्म, शुद्ध गन्धक, बंग भस्म और कौड़ी भस्म तक, गोमूत्र, कांजी और कुलथी के काथ ) में १-१ भाग तथा स्वर्ण भस्म २ भाग लेकर प्रथम | पृथक् पृथक् सात सात बार बुझावें । फिर बकरे पारे गन्धकको कजली बनावें । तत्पश्चात् उसमें के मूत्र में सात बुझाव दें । इस प्रकार भर्त धातु अन्य औषधे मिलाकर उसे ३ भावना गायके शुद्ध हो जाती है। दूधको, २१ भांगके रसकी, ७ धतूरेके रसकी तथा ७-७ भावना लांग, जायफल, केसर, ककोल, ___समान भाग मिश्रित गन्धक और हरतालको अकरकरा, गजपीपल, पीपल और सफेद चन्दनके आकके दूधमें घोटकर भर्त पर लेप करके उसे काथकी एवं १ भावना कस्तूरीकी देकर सुरक्षित | गज पुटमें फूंकने से ५ पुटमें भस्म हो जाती है। रक्खें। ___ यह भस्म योगवाही है। इसके सेवनसे वीर्यवृद्धि होती और पुरुषत्व बढ़ता है। यह इन्द्रियोंकी क्षीणताको नष्ट करता (४२६३) पञ्चलोहरसायनम् तथा लिङ्गको प्रवृद्ध और दृढ़ करके अनेको त्रियों (यो. र.; वृ. नि. र. । प्रमेहा.) से रमण करनेकी शक्ति देता है। मृताभ्रकान्तलोहानां नागवङ्गौ विशोषितौ । (मात्रा २-३ रत्ती ।) यथोत्तरं भागदया खल्वमध्ये विनिक्षिपेत् ॥ (४२६२) पश्चलोहमारणम् तलपोटेन वाराखा शतावर्या हिमाम्बुना। ( आ. वे. प्र. । अ. १२) भावनाऽत्र प्रकर्तव्या याम या पृथक् पृथक् ।। कांस्य रीतिस्तथा तानं नागो वश्च पञ्चमः । चणमात्रां वटीं कृत्वा नवनीतेन सेवयेत् । एकत्र द्रावितैरेतः पञ्चलोई मजायते ॥ प्रातरुत्थाय विधिना सर्वमेहकुलान्तकः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy