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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अञ्जनमकरणम् ] अञ्जनं च गुटिकादिकं स्फुटं . सर्व भूतज नितज्वरापहम् ॥ www.kobatirth.org तृतीयो भागः । पीपल, ल्हसन, राई, बच और हर्रका समानभाग - मिश्रित अत्यन्त महीन चूर्ण लेकर उसे पानी के साथ घोटकर गुटिका बना लें । (४२३६) पिप्पल्याद्यञ्जनम् (५) (ग. नि. । ने रो.) आंखमें इसका अञ्जन लगाने से भूत-जनित वर नष्ट होता है । air कर बीजानि त्रिफला च रसाञ्जनम् । रो स्वर्णफलं शुण्ठी काअिकेनाति पेषयेत् ॥ छायाशुकस्य तस्याथ गुटिका वारिचूर्णिता । निशान्ध्यं हन्ति तिमिरं कण्डूं चाम्लकसंयुता ॥ पीपल, करञ्जबीज, हर्र, बहेड़ा, आमला, रसौत, लोध, निर्मलीके फल और सांठ । सबके समान भाग मिश्रित अत्यन्त महीन चूर्णको काञ्जीके साथ अच्छी तरह घोटकर गुटिका बना - कर छायामें सुखा लें । इसे लकुचके स्वरसमें या पानी में घिसकर आंखमें लगानेसे रतौंधा, तिमिर और नेत्रोंकी खुजली आदि रोग नष्ट होते हैं । (४२३७) पुण्डरीकयोग: (ग. नि. । नेत्ररो. ) एकं वा पुण्डरीकं च छागक्षीराव से चितम् । रोगांश्च वेदनां हन्यात्क्षतपाकात्ययाजकान् ॥ केवल पुण्डरीक ( श्वेतकमल ) को बकरीके दूधमें भिगोकर पीसकर आंखमें लगानेसे नेत्रपीड़ा, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ४०१] नेत्रक्षत, पाकात्यय और अजकाजातादि नेत्ररोग नष्ट होते हैं । (४२३८) पुनर्नवायोगः ( ग. नि. । नेत्र.; शा. ध. । ख. ३ अ. १३; यो र.; वृ. नि. र. । नेत्र. ) दुग्धेन कण्डूं क्षौद्रेण नेत्रस्रावं च सर्पिषा । पुरुष तैलेन तिमिरं काञ्जिकेन निशान्धताम् ॥ पुनर्नवा जयेदाशु भास्करस्तिमिरं यथा ।। पुनर्नवा ( साठी ) को दूधमें घिसकर आंखांमें लगाने से नेत्रोंकी खुजली, शहद में घिसकर लगाने से नेत्रस्राव, घीके साथ लगानेसे तैलके फूला, साथ लगाने से तिमिर और कांजी के साथ पीसकर लगानेसे रतौधा नष्ट होता है । (४२३९) पुष्पकासीसाद्यञ्जनम् ( ग. नि. । नेत्ररो. ३; वं. से. । नेत्ररो; वा. भ. । 1 उत्त. अ.१६ ) पुष्पकासीसचूर्ण वा सुरसारसभावितम् । ताम्रे दशाहं तत्पैल्लपक्ष्मरोगजिदञ्जनात् ॥ पुष्पकसीस को तुलसीके रसकी भावना देकर दश दिन तक ताम्र पात्रमें पड़ा रहने दें और फिर पीसकर अञ्जान बना लें 1 इसे आंख में लगानेसे पिल्ल इत्यादि पश्मरोग नष्ट होते हैं । (४२४०) पुष्पहरीवर्तिः ( भा. प्र. म. ख. ने. रो. ) पलाशपुष्पस्वरसैर्बहुशः परिभावितम् । करअत्रीजं तद्वर्तिर्दृष्टेः पुष्पं विनाशयेत् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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