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आसवारिष्टप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[३८३]
___ पीपल, लोध, काली मिर्च, पाठा, आमला, कपड़ेसे छना हुवा पीलुका रस ३२ सेरे, एलवालक, चव, चीता, बायविडंग, सुपारी, खस, | धायके फूल, मुनक्का, खजूर, आमला, पाठा, काला सफेदचन्दन, नागरमोथा, फूलप्रिय, लवलीफल | | अतीस, धमासा, अमलबेत, सोंठ, मिर्च, पीपल, ( हरफारेवड़ी), हल्दी, सौंफ, केवटी मोथा, तेज
दालचीनी, इलायची, कंकोल, स्पृक्का (असवरण),
| बेर, लांग, बायबिडंग, पीपलामूल और चीता पात, दालचीनी, कूठ, तगर और नागकेसर २॥-२॥ तोले । मुनक्का ६० पल ( ३॥ सेर)।
५-५ तोले । गुड़ ६। सेर । धायके फूल १० पल ( ५० तोले ) और गुड़
कूटने योग्य चीजेको कूट लें। फिर सबको १८॥ सेर लेकर कूटने योग्य चीजेको कूटकर
एकत्र मिलाकर स्निग्ध मटके में भरकर उसका सबको ६४ सेर पानी में मिलाकर चिकने मटके मुख बन्द करके निर्वात स्थान में रखदें । और में भरकर यथाविधि आसव तैयार करें। ..
१५ दिन पश्चात् निकालकर छान लें। __ यह पिप्पल्यरिष्ट (आसव) संग्रहणी, पाण्डु,
इसके सेवनसे अर्श और गुल्म नष्ट होते तथा अर्श, खांसी, गुल्म, उदररोग, ज्वर और अरुचिको | अग्नि दीप्त होती है। नष्ट करता है ।*
(४१५५) पील्वासवः (२) पिप्पल्यासवः (भै. र.; शा. ध.)
( ग. नि. । आस. ६) (पिप्पल्यरिष्ट देखिये )
मूखजूरपाठानिलरिपुमधुकं कच्छुरा हारहूरा (४१५४) पील्वासवः (१)
कोलत्वग्वेतसाम्लं दहनमिशिकणाकृष्णाविश्वा (ग. नि. । आसवा. ६; वा. भ. । चि. अ. ८)
_लवङ्गम् । द्रोणं पीलुरसस्य वस्त्रगलितं न्यस्तं हविर्भाजने।
त्वग्लोधादाडिमाञ्च पलमितमिति पृथक् दन्ति
मूलेन युक्तं । युञ्जीत द्विपलैमंदामधुफलाखजूरधात्रीफलैः ।। पाठामाद्रिदुरालभाम्लविदुलव्योषत्वगेलोल्लकैः ।
". पीलुद्रोणे द्विपक्षं गुडपलशतयुक् धान्यराशौ स्पृक्काकोललवङ्गवेल्लचपलामूलाग्निकैःपालिकैः॥
निदध्यात् ॥ गुडशतविनियोजितं निवाते
अशः प्लीहं च गुल्मं जठरगदमथो नाशयेनिहितमिदं प्रपिबेञ्च पक्षमात्रात् ।
चाग्निमान्यम् । निशमयति गुदाङ्कुरान्सगुल्मा
कुर्याच्चाग्नि प्रदीप्तं प्रबलबलयुतं पीलसंज्ञासननलबलं प्रबलं संविधत्ते ॥
वोऽयम् ॥ __ *शाधर तथा भै. र. व. में लवली, मिशी, पेलव
मूर्वा, खजूर, पाठा, अरण्डकी जड़, मुलैठी, की जगह लवंग, मांसी और एला लिखा है तथा |
धमासा, मुनक्का, बेरीकी छाल, अमलबेत, चीता, नाम पिप्पल्यासव लिखा है। शेषयोग समान है।
काली
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