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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ३७८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि पीठसी विभग्नश्च पीत्वा तैलं सुखी भवेत् । । तैलाढकं चतुः क्षीरं दधितुल्यं द्विकालिकम् । प्रसारणीतैलमिदं बलवर्णाग्निवर्द्धनम् ॥ द्विपलैर्ग्रन्थिकक्षारमसारण्यक्षसैन्धवैः॥ काथ-प्रसारणी १०० पल ( ६। सेर )। समञ्जिष्ठाग्नियष्टयाहैः पलिकैर्जीवनीयकैः । पाकार्थ जल ३२ सेर । शेष काथ ८ सेर । | शुण्ठयाः पञ्चपलं दत्त्वा त्रिंशद्भल्लातकानि च ॥ __ अन्य द्रव पदार्थ-दही ४ सेर, मस्तु ४ पचेद्वस्त्यादिना वातं हन्ति सन्धिशिरास्थितम् । सेर, कांजी ४ सेर । पुंस्त्वोत्साहस्मृतिप्रज्ञाबलवर्णामिवृद्धये ॥ ___कल्क--चीता, मुलैठी, पीपलामूल, सेंधा- काथ-(१) प्रसारणी १२॥ सेर पाकार्थ नमक, बच, प्रसारणीकी जड़ और जवाखार १०- जल ३२ सेर । शेष काथ ८ सेर । १० तोले | भिलावों की गिरी ३० पल (१५० (२) असगन्ध १२॥ सेर । पाकार्थ जल तोले ) अथवा ३० नग और सेठ २५ तोले। ३२ सेर । शेष काथ ८ सेर । विधि-२ सेर तिलके तैलमें काथादि (३) दशमूल १२॥ सेर । पाकार्थ जल ३२ उपरोक्त समस्त पदार्थ मिलाकर मन्दाग्नि पर तैल- | सेर । शेष काथ ८ सेर । पाक सिद्ध करें। ___अन्य द्रव पदार्थ-दूध ३२ सेर, दही ८ यह तैल वातकफज रोग, ८० प्रकार के | | सेर और काजी १६ सेर । वातरोग, कुजता, अंगोंका छोटा होना, पङ्गुता, गृध्रसी, खुडवात, पीठ कमर और ग्रीवाका जकड़ कल्क--पीपलामूल, जवाखार, प्रसारणी, जाना और अस्थि-भंग आदि रोगों को नष्ट | बहेड़ा, सेंधानमक, मजीठ, चीता और मुलैठी करता है। १०-१० तोले । जीवक, ऋषभक, मेदा, महा___इसके सेवन से बल वर्ण और अमिकी वृद्धि | मेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, मुद्गपर्णी, माषपर्णी, होती है। | जीवन्ती और मुलैठी ५-५ तोले । सेठ २५ प्रसारणीतैलम् तोले और ३० नग भिलावे । ( शा. ध.। खं. २ अ. ९; वृ. नि. र. । वा. व्या.;) विधि-८ सेर तिलके तेलमें उपरोक्त ___ कुञ्जप्रसारणीतैल सं. ८७३ देखिये। | समस्त पदार्थ मिलाकर पकावें । जब तैल मात्र (४१४४) प्रसारणीतैलम् (८) (मध्यम) । शेष रह जाय तो छान लें। ( . मा. । वा. व्या.) __ इसे बस्ति इत्यादि द्वारा प्रयुक्त करनेसे सन्धि प्रसारण्यास्तुलामश्वगन्धाया दशमूलतः। | और शिरागत वायु नष्ट होता तथा पौरुष उत्साह तुला तुला पृथग्वारिद्रोणे पक्त्वांशशेषिते ॥ । स्मृति बुद्धि बल वर्ण और अग्निकी वृद्धि होती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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