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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तैलमकरणम् ] (४१२१) पाठादितैलम् (च. द. यो. र.; भै. र. ग. नि.; वृं. मा. र. र. । नासा.; वृ. यो त । त. १३०; शा. ध. । ख. २ अ. ९ ) तृतीयो भागः । पाठाद्विरजनीमूर्वापिप्पलीजातिपल्लवैः । दन्त्या च तैलं संसिद्धं नस्यं सम्पकपीनसे || (४१२२) पानीनाशक तैलम् ( नपुंसकामृ । त. ६ ) काथ- पाठा, हल्दी, दारूहल्दी, मूर्वा, पीपल, चमेली के पत्ते और दन्तीमूल । सब समान -भागमिश्रित ४ सेर | पाकार्थ जल ३२ सेर । शेष काथ ८ सेर | I इसे अग्रभाग और सीवन को बचाकर इन्द्री पर लगाना चाहिये । जब फुंसियां निकल आवें तो तेल लगाना बन्द कर के रोपणी क्रिया करनी चाहिये । ( चमेलीका तैल आदि लगाना चाहिये । ) इस प्रकार इस तैलके प्रयोगसे इन्द्रीकी नसोंका पानी निकल कर नपुंसकता दूर हो जाती है। यह अत्युत्तम प्रयोग है । (४१२३) पिण्डतैलम् (१) (महा) ( भा. प्र. । वा. र. ) सारिवारिष्टकुष्माण्डपोतकी भस्मजाम्बुना । गुडूचीगन्यदुग्धाभ्यां कर्मरङ्गरसेन च ॥ विपचेतिल तैलं दत्वैतानि भिषग्वरः । काकोल्यौ जीवकं मेदे शताहा क्षीरिणीयुतैः ॥ कल्क- उपरोक्त समस्त पदार्थ समान भागमिश्रित १३ तोले ४ माशे । विधि-२ सेर तिलका तैल, काथ और कल्क को एकत्र मिलाकर पकावें । जब काथ जल जाय तो तैल को छान लें । इसकी नस्य लेने से पक्क पीनस नष्ट होती है। जिङ्गी सिक्थामृतानन्ता सर्जसैन्धवचन्दनैः । ज्योतिष्मती तु कुडवमजेपालं पलद्वयम् । जातीफल जातिपत्र चोलच देवपुष्पकम् ॥ सर्वान्सम्मेल्य विधिना तैलं संकर्षयेत्ततः । अग्रभागं च सीमानौ त्यक्ता छेषं प्रलेपयेत् ॥ पिटिकादर्शनात्वा लेपने तैलसम्भवम् । रोपणीं च क्रियां कुर्याद्यावदारोग्यतां ब्रजेत् ॥ अनेनैव विधानेन शिश्ननाडीभव जलम् । नश्यति नात्र सन्देहो योगोयं परमोत्तमः ॥ [ १६७ ] ५-५ तोले लेकर सब का पाताल यन्त्र से तैल निकाले । मालकंगनी २० तोले, जैपाल (जमालगोटा ) १० तोले, जायफल, जावत्री, दालचीनी और लौंग । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हन्याद्वातास्रजं घोरं स्फुटितं गलितं तथा ॥ चर्मदाख्यं पामादस्त्वग्दोषञ्च विपादिकम् । कुष्ठान्यशांसि वीसर्प व्रणशोथं भगन्दरम् ॥ न सोऽस्ति वातरक्तस्य विकारो योऽभिवर्द्धितः। यन्न हन्यात्प्रसहचैतत् पिण्डतैलं महत्स्मृतम् ॥ सारिवा, नीम, पेठा और पोई की समान भाग मिश्रित भस्मको ६ गुने पानी में घोल कर क्षार बनाने की विधिसे २१ बार छान कर स्वच्छ पानी निकालें । यह पानी २ सेर, गिलोयका काथ ( आठ गुने पानी में पकाकर चौथा भाग शेष रहा हुवा ) २ सेर, गायका दूध २ सेर और कमरखका रस For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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