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[३४८]
भारत-भैषज्य रत्नाकरः।
[पकारादि
मुलैठी और लोधके कल्कसे सिद्ध घृत भी रक्त- कल्क--उपरोक्त चीजें समान-भाग-मिलित पित्तको नष्ट करता है।
। ६ तोले ८ माशे लेकर पानीके साथ पीस लें। (४०७२) पलाशादिघृतम् ।
विधि--१ सेर गायका नवनीत (मक्खन) (रा. मा. । अशे. १८वं. से. । अर्श.) और उपरोक्त काथ तथा कल्क एकत्र मिलाकर त्रिगुणेन पलाशभस्मनः सलिलेनोषणकायेन वा काथ जलने तक पकावें । तदनन्तर घृतको परिपाचितमाज्यमश्नुते ध्रुवमाशु प्रशमोऽर्शसां |
छान लें। भवेत् ॥
इसे बच्चोंको पिलानेसे उनकी बुद्धि, स्मरणढाक ( पलाश ) की राखका पानी ६ सेर, | शक्ति, रूप और बलकी वृद्धि होती है। सोंठ, काली मिर्च और पीपलका समान-भाग- | (४०७४) पाठाचं घृतम् (२) मिश्रित कल्फ २० तोले तथा धी २ सेर लेकर
(वं. से. । बालरो.) सबको एकत्र मिलाकर पानी जलने तक पकावें। | पाठामतिविषां कुष्ठं सरलं देवदारु च ।
इसे सेवन करने से अर्श शीघ्र ही नष्ट हो / द्विपिप्पल्यौ तेजवती चित्रकं विश्वभेषजम् ।। जाती है। ( मात्रा-६ माशे ।)
उभे हरिद्रे सरलं फलानि कुटजस्य च । . ( ढाक की राख को ६ गुने पानीमें घोल
गण्डीरीमजमोदाश्च विडङ्ग कटुरोहिणीम् ॥
वचा सर्पसुगन्धाश्च श्रेयसी मरिचानि च । कर २१ बार छानकर स्वच्छ पानी निकालें । यही
मातुलुङ्गस्य मूलानि दाडिमस्य रसेन तु ॥ पानी उपरोक्त धीमें डालना चाहिये ।)
इलक्ष्णपिष्टानि संयोज्य क्षीरे सर्पिर्विपाचयेत् । (४०७३) पाठाचं घृतम् (१) । | मृदमियः कुमारः स्यात्क्रिमिकोष्ठश्च यो भवेत्।।
(ग. नि. । बाल रो. ११) अरोचकगृहीतश्च तथा यश्चातिसार्यते । पाठा वचा सैन्धव शिग्रु पथ्या एतत्सर्पिः प्रयोक्तव्यं कुमारो बलवान् भवेत् ॥
कटुत्रयं गोनवनीतपकम् । पाण्डुरोगाच गुल्माच तथा श्वयथुसश्चयात् । एतघृतं पानत एव कुर्यात्
कृशभावाच दैन्याच स्वरभेदात्तथैव च ॥ मति स्मृति रूपबलं शिशूनाम् ॥ प्रज्वालावर्णभेदाच क्षिप्रमेव विमुच्यते ॥ काथ-पाठा, बच, सेंधानमक, सहजनेकी कल्क-पाठा, अतीस, कूठ, देवदार, धूपछाल, हरे, सोंठ, मिर्च और पीपल । सब समान- सरल, पीपल, गजपीपल, चव, चीता, सोंठ, हल्दी, भाग-मिश्रित २ सेर लेकर कूटकर १६ सेर दारुहल्दी, सरल ( धूप सरल), इन्द्रजौ, मजीठ, पानीमें पकावें जब ४ सेर पानी शेष रह जाय अजमोद, बायबिडंग, कुटकी, बच, सर्पगन्धा तो छान लें।
(गन्ध रास्ना ), हर्र, कालीमिर्च और बिजो रेकी
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