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घृतपकरणम् ]
हतीयो भागः।
[३४३]
(४०५६) पञ्चपलं घृतम्
( सब चीजें समान भाग मिलाकर १ (भै. र.; च. द. । गुल्मा.; च. सं. । चि. सेर लें और कूट कर ८ सेर पानीमें पकावें । अ. ५ गुल्म.) ।
२ सेर पानी शेष रहने पर छान कर उसमें आधा पिप्पल्याः पिचुरध्यर्दो दाडिमाद्विपल पलम्।
| सेर घी तथा उपरोक्त चीजोंका समानभाग-मिश्रित धान्यात् पश्चाघृताच्छुण्ठ्याः कर्षः क्षीरं चतु
६ तोले ८ माशे कल्क मिलाकर धूप में रक्खें गुणम् ॥
और पानी खुश्क हो जाने पर छान लें। अथवा सिद्धमेतद् घृतं सद्यो वातगुल्मं चिकित्सति। आगपर पकाकर पानी जला दें।) योनिशूलं शिरःशूलमांसि विषमज्वरम् ॥ इस तेलका फाया योनिमें रखना चाहिये ।
पीपल १ तोला १०॥ माशे, अनारदाना | (४०५८) पञ्चमूलाधं घृतम् १० तोले, धनिया ५ तोले और सांठ ११ तोला । (यो. र.; वं. से. । ग्रहणी.; वृ. यो. त. । त. लेकर सब को पानीके साथ पीस लें । तत्पश्चात् ६७ वा. भ. । चि. अ. १०) यह कल्क, ५० तोले घी और २०० तोले दूध
घो और २०० तोले दूध | पञ्चमूल्यभयाव्योषपिप्पलीमूलसैन्धवैः । एकत्र मिलाकर पका । और दूध जल जाने पर
रास्नाक्षारद्वयाजाजीविडङ्गशटिभिश्रुतम् ॥ घृतको छान लें।
पकेन मातुलुङ्गस्य स्वरसेनाऽऽद्रेकस्य च । ___ इसके सेवनसे वातज गुल्म, योनिशूल, शिर- शुष्कमूलककोलाम्बुचुक्रिकादाडिमस्य च ॥ पीड़ा, अर्श और विषमज्वर नष्ट होता है। | तक्रमस्तुसुरामण्डसौवीरकतुषोदकैः।। ( मात्रा-१ तोला ।)
काधिकेन च तत्पक्त्वा पीतमग्निकरं परम् ।। (४०५७) पञ्चपल्लवाचं घृतम्
शूलगुल्मोदरानाहकार्यानिलगदापहम् ।। (च. द. । योनिन्याप.)
कल्क-बेलछाल, अरलुकी छाल, खम्भापञ्चपल्लवयष्टयाहमालतीकुसुमैय॒तम् । | रीकी छाल, पाढल, अरणी, हर्र, सांठ, मिर्च, पीपल, रविपकमन्यथा वा योनिगन्धार्तवनाशनम् ॥ | पीपलामूल, सेंधा नमक, रास्ना, जवाखार,
पश्चपल्लव ( आमकेपत्ते, जामनके पत्ते. । सजीखार, जीरा, बायबिडंग और शटी ( कचूर) बिजौरे नीबूके पत्ते, कैथके पत्ते और बेलके पत्ते), | सब चीजें समानभाग-मिश्रित २० तोले । मुलैठी और चमेली के फूलों के कल्क तथा काथसे | द्रव पदार्थ-पके हुवे बिजौरे नीबूका सूर्यपाक द्वारा अथवा अग्निपर पकाकर सिद्ध किया | रस २ सेर, अदरकका रस २ सेर, सूखी मूलीका हुवा घृत योनिकी गन्ध और आर्तव-विकारों को काढ़ा २ सेर, बेरका काढ़ा २ सेर, चूकेका रस मष्ट करता है।
२ सेर, अनारका रस २ सेर, तक्र २ सेर, दहीका १-प्रस्थमिति पाठान्तरम् ।
| पानी २ सेरे, सुराका मण्ड ( स्वच्छ भाग)
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