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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra [ ३३८ ] www.kobatirth.org भारत त-भैषज्य रत्नाकरः । अथ पकारदिघृतप्रकरणम् कल्क -- पीपल, पीपलामूल, चव, चीता, सोंठ और जवाखार ( सब समानभाग - मिश्रित २० तोले ) लेकर पीसलें । (४०४४) पञ्चकोलघृतम् (१) (४०४५) पञ्चकोलघुतम् (२) (बृ. नि. र. । पाण्डु; हा. सं. । स्था. ३ अ. ९ ) पञ्चकोलं यवाग्रं च क्षीरं दधा घृतं पुनः । ( च. सं. । चि. अ. १३ उदर. ) पिप्पलीपिप्पलीमूलचव्यचित्रकनागरैः । समांशानि तु योज्यानि भाङ्ग कुष्ठं च पौष्करम् ॥ सक्षारैरर्द्धपलिकैर्द्विप्रस्थं सर्पिषः पचेत् ॥ शतं तत्र हरीतक्या जले चैव चतुर्गुणे । का चैकत्र योज्यान्ते काथयेन्मृदुवह्निना ।। मृदुपाकघृतं सिद्धं पाने नस्ये च बस्तिषु । गुणाधिक्यं भवेन्नृणां पाण्डुरोगे हलीमके ॥ क्षये च राजयक्ष्मणि च शस्तमुक्तं भिषग्वरैः ॥ काथ --भरंगी, कूठ और पोखरमूल तथा १०० हर्र । सब मिलित २ सेर 1 काथार्थ जल १६ सेर । शेष काथ ४ सेर अन्य पदार्थ - दूध २ सेर, दही ४ सेर, घी २ सेर । विधि काथ कल्क और अन्य समस्त पदार्थों को एकत्र मिलाकर मन्दाग्निपर पकावें । जब घृतमात्र शेष रह जाय तो उसे छान लें 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसे पिलाने अथवा बस्ति या नस्य द्वारा प्रयुक्त करनेसे पाण्डु, हलीमक क्षय और राजयक्ष्माका नाश होता है । [ पकारादि कल्कैर्द्विपञ्चमूलस्य तुलार्धस्वरसेन च । दण्डाकोपेतं तत्सर्पिर्जठरापहम् ॥ श्वयथुं वातविष्टम्भं गुल्माशसि च नाशयेत् ॥ सांठ और यवक्षार २||२|| तोले | कल्क — पिप्पली, पीपलामूल, चव, चीता, काथ -- २५ पल ( १ सेर ४५ तोले ) दशमूलको २०० पल ( १२ ॥ सेर ) पानी में पकावें और जब ५० पल पानी शेष रह जाय तो छान लें। विधि ४ सेर घी, ८ सेर मस्तु (दहीका पानी) उपरोक्त काथ और कल्क एकत्र मिलाकर पकावें । जब घृतमात्र शेष रह जाय तो उसको छान 1 यह घृत उदरव्याधि, शोध, वायु, विष्टम्भ, गुल्म और अर्श को नष्ट करता है । ( मात्रा - - १ तोला । ) I (४०४६) पञ्चकोलाद्यं घृतम् १ (१) ( च. सं. । चि. अ. ५ गुल्म.; वृ. नि. र. । गुल्म . ) पिप्पली पिप्पलीमूलं चव्यचित्रकनागरैः । पलिकैः सयवक्षारैर्धृतप्रस्थं विपाचयेत् ॥ For Private And Personal Use Only १ - शार्ङ्गधर में यवक्षारके स्थान में सैन्धन, और दूध चार गुना लिखा है ।
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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