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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेहमकरणम् ] तृतीयो भागः। [३२३] पञ्चजीरक इत्येष सूतिकानां प्रशस्यते ॥ । एतानि पलमात्राणि गुडं पलशतं मतम् । गर्भार्थिनीनां नारीणां प्रदुष्टे चैव मारुते। क्षीरं प्रस्थद्वयं दद्यात्सर्पिषः कुडवं तथा ॥ विंशतिळपदो योनेः कासं श्वासं स्वरक्षयम् ॥ पञ्चजीरकपाकोऽयं प्रसूतानां प्रशस्यते । हलीमकं पाण्डुरोगं दौर्गन्ध्यं कृच्छ्रमूत्रताम् । युज्यते सूतिकारोगे योनिरोगे ज्वरे क्षये ॥ हन्ति पीनोन्नतकुचाः पद्मपत्रायतेक्षणाः ॥ | कासे श्वासे पाण्डुरोगे कार्ये वातामयेषु च ॥ उपयोगाखियो नित्यमलक्ष्मीकलिवर्जिताः ॥ । जीरा, कलौंजी, सोया, सौंफ, अजवायन, __ जीरा, हाऊबेर, धनिया, सोया, बेर, अजवा- | अजमोद, धनिया, मेथी, सोंठ, पीपल, पीपलामूल, यन, राई, हिङ्गपत्री, कसौंदी, पीपल, पीपलामूल, | चीता, हाऊबेर, बिदारीकन्द, त्रिफला, कूठ और अजमोद, कालाजीरा और चीता ५-५ तोले तथा | कमीला ५-५ तोले लेकर चूर्ण बनावें । तत्पधनिया, कसेरु, सांठ, कूठ और अजमोद २० | श्चात् १०० पल (६। सेर) गुड़को ४ सेर २० तोले लेकर चूर्ण बनावें । तत्पश्चात् १०० | दूधमें घोलकर उसमें ४० तोले घी मिलाकर पल (६। सेर ) गुड़को ४ सेर दूधमें घोलकर पकावें । जब वह गाढ़ा हो जाय तो उसमें उपउसमें २ सेर घी डालकर पकावें । जब | रोक्त चूर्ण मिला कर सुरक्षित रक्खें । चाशनी तैयार हो जाय तो उसमें उपरोक्त चूर्ण यह 'पञ्चजीरक पाक' प्रसूता स्त्रियोंके मिलाकर चिकने पात्रमें भरकर रखें। लिये हितकारी है । इसके सेवनसे प्रसूतरोग, यह गुड़ प्रसूता तथा गर्भार्थिनी स्त्रियोंके योनिरोग, ज्वर, क्षय, खांसी, श्वास, पाण्डुरोग, कृशता और वातज रोग नष्ट होते हैं । लिये हितकारी है। (मात्रा-१॥ तोला ।) इसके सेवनसे वातव्याधि, २० प्रकारके (४०१६) पटोलाद्यवलेहः योनिरोग, खांसी, श्वास, स्वरक्षय, हलीमक, पाण्डु (वं. से. । अर्श.; ग. नि. । लेहा.) रोग, शरीरकी दुर्गन्धि और मूत्रकृच्छ आदि रोग पटोलमूलं त्रिफलां विशालां चतुरङ्गलम् । नष्ट होते तथा कान्तिकी वृद्धि होती है । नीलिनी त्रिवृतां दन्ती कृमिघ्नं सपुनर्नवाम् ।। (मात्रा-१॥ तोला ।) कटुकां सातलां लोधं भागान्दशपलोन्मितान् । (४०१५) पञ्चजीरकपाक: दत्त्वा द्रोणचतुष्कन्तु सलिलं पादशेषितम् ॥ ( यो. र.; भा. प्र.; वृ. नि. र. । सूतिका.) | तैलस्य कुडवं तत्र गुडस्य तु तुलां पचेत् । जीरकं स्थूलजीरश्च शतपुप्पा द्वयं तथा। त्रिचूर्ण पलान्यष्टौ लेहवत्साधुसाधयेत् ।। यवानी चाजमोदा च धान्यकं मेधिकापि च ॥ शीतीभूते न्यसेत्तत्र व्योपं पञ्चपलोन्मितम् । शुण्ठी कृष्णा कणामूलं चित्रकं हपुषाऽपि च । पलत्रय जातस्य दत्वा सङ्घट्टयेत्पुनः ।। विदारीफलचूर्णन्तु कुष्ठं कम्पिल्लकं तथा ॥ १-गदनिग्रहमें विशालाके स्थानमें रजनी पाठ है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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