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सगृध्रसीं नूतनखञ्जताञ्च । लहानमुग्रं जठराणि गुल्मं
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गुग्गुलुप्रकरणम् ]
gar नरस्य शीघ्रं हिमाम् पानान च भोजनानि ॥ निषेव्यमानो विनिहन्त रोगान्
पाण्डुत्वकण्डूवमिवातरक्तम् ॥
तृतीयो भागः ।
पध्यादिगुग्गुलु एषु नाम्ना
ख्यातः क्षितौ चाप्रमितप्रभावः । बलेन नागेन समं मनुष्यं
जवेन कुर्यात्तुरगेन तुल्यम् ॥ आयुःप्रकर्षे विदधाति सद्यः
चक्षुर्बलं पुष्टिकरो विषघ्नः । क्षतस्य सन्धानकरो विशेषात्
रोगेषु शस्तः सकलेषु चैत्र ॥ हरे १००, बहेड़े २००, और आमले ४०० नग तथा गूगल १ सेर ( ८० तोले ) लेकर गूगलके सिवाय बाकी सब चीज़ोंको अधकुटी करके ३२ सेर पानी में भिगो दें और २४ घण्टे बाद उसे पकाकर आधा पानी शेष रहने पर छान लें । इस छने हुवे काथको दुबारा लोहे की कढ़ाई में पकावें और इस बार इसमें वह गूगल भी डाल दें । जब पानी गाढ़ा हो जाय तो उसे आगसे नीचे उतारकर उसमें बायबिडंग, दन्ती, हर्र, बहेड़ा, आमला, गिलोय, पीपल, निसोत, सांठ और काली मिर्चका २॥ - २॥ तोले चूर्ण मिलावें ।
इसके सेवनसे गृध्रसी, नवीन खञ्जवात, कष्टसाध्य प्लीहा, उदर रोग, गुल्म, पाण्डु, खुजली, हर्दि और वातरक्त आदि रोग नष्ट होते हैं; शरीर में हाथी के समान बल आ जाता है; और चाल घोड़े के समान तीव्र हो जाती है ।
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यह आयुष्य -- वर्द्धक, पौष्टिक, और विषन्न है। rain बलको बढ़ाता है । एवं घाव को भरनेमें विशेष उपयोगी है | ( मात्रा ३ माशे । )
इसके सेवनकाल में शीतल जल पीना और शीतल आहार खाना चाहिये ।
(४०१२) पुनर्नवागुग्गुलुः
(भै. र.; वं. से. भा. प्र. । वातरक्त; वृ. यो. त । त. ९१ )
पुनर्नवामूलशतं विशुद्धं
basमूलञ्च तथा प्रयोज्यम् । दत्वा पलं षोडशकञ्च शुण्ठ्याः
सङ्कटय सम्यग्विपचेद् घटेऽपाम् ॥ पलानि चाष्टादश कौशिकस्य
तेनाष्टशेषेण पुनः पचेत्तु । एरण्डतैलं कुडवञ्च दद्यात्
तथा त्रिचूर्णपलानि पञ्च ॥ निकुम्भचूर्णस्य पलं गुडूच्याः
पलद्वयं च द्विपलं प्रतिह | फलत्रयं ज्यूषणचित्राणि
सिन्धूत्थभल्लात विडङ्गकानि ॥ कर्ष तथा माक्षिकधातु चूर्ण
पुनर्नवाया: पलमेव चूर्णम् । चूर्णानि दत्त्वा हयवतार्य शीते
खादेन्नरो मापत्रयप्रमाणम् ॥ वाता वृद्धिगदञ्च सप्त
जयत्यवश्यं त्वथ गृध्रसीश्च । जङ्कोरुपृष्ठत्रिकवस्तिजञ्च
तथामवातं प्रवञ्च शीघ्रम् ॥
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