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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुग्गुलुप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [३१९ ] (४००७) प्लीहारिवटिका ल्हसन समान भाग लेकर सबको एकत्र कूटकर आधे आधे माशे की गोलियां बनावें। ( आ. वे. वि. । चि. अ. ६) इनके सेवनसे तिल्ली और कष्टसाध्य गुल्म कासीसश्च सहासारं रसोनश्चाप्यकञ्चुकम् । | नष्ट हो जाता है। सर्व सम्पर्ध वटिकामर्द्धमाषप्रमाणिकाम् ॥ | ( अनुपान---उष्ण जल । ) रचयित्वाऽथ संशोष्य योजयेत् प्लीहरोगिणे।। प्लीहारिवटिका प्लीहानं नाशयेदेषा गुल्मचापि सुदारुणम् ।। (भै. र.) कसीस, एलवा (मुसब्बर) और छिला हुवा | रसप्रकरणमें देखिये । इति पकारादिगुटिकापकरणम् । अथ पकारादिगुग्गुलुप्रकरणम् (४००८) पक्षाघातारिगुग्गुलुः | लेकर चूर्ण बनावें और फिर इसमें सबके बराबर (वृ. नि. र. । वातव्या.) शुद्ध गूगल मिलाकर थोड़ा थोड़ा घी डालकर खूब कृष्णाजटानागरचव्यवहि-- कूटें । पाठविडोन्द्रयवैः समांशै । इसके सेवनसे पक्षाघात नष्ट होता है । हिङ्गनगन्धाद्विजयष्टिकौन्ती (मात्रा-१॥ माशा । अनुपान उष्ण जल ।) - मातङ्गकृष्णातिविषान्वितश्च ॥ ससर्षपाजाजियुगाजमोदा (४००९) पश्चतिक्तवृतगुग्गुल: न्वितैः समस्तैत्रिफला द्विभागा। (भै. र.; च. द. । कुष्ठा.) एभिः समो गुग्गुलुराजमिश्रो निम्बामृतावृषपटोलनिदिग्धिकानाम् भुक्तो हरेत्पक्षभवानिलातिम् । भागान् पृथक् दशपलान् पचेद्घटेऽपाम् । पीपलामूल, सेठ, चव, चीता, पाठा, बाय- | अष्टांशशेषितरसेन सुनिश्चितेन बिडंग, इन्द्रजौ, हींग, बच, भरंगी, रेणुका, गज- । प्रस्थं घृतस्य विपचेत्पिचुभागकल्कैः ॥ पीपल, अतीस, सरसों, दोनो जीरे और अजमोद | पाठविडङ्गसुरदारुगजोपकुल्याएक एक भाग तथा त्रिफला इन सबसे दो गुना । द्विक्षारनागरनिशामिशिचव्यकुष्ठैः। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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