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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - कषायमकरणम] तृतीयो भागः। [२८५ ] (३८५९) पुष्करमूलादिकाथः अजवायन । इनके काथमें यवक्षार और सेंधानमक (ग. नि.; रा. मा. । ज्वर.) मिलाकर गरम गरम पीनेसे हृद्रोग नष्ट होता है । पुष्करमूलगुडूचीनिदिग्धिकानागरैः कृतः कायः (३८६२) पुष्करादिकाथ: (२) कासश्वासबलासाश्वरं च हन्ति त्रिदोषस- (यो. र.; वं. से.; . मा.; च. द.; वृ. नि. र. । म्भतम कास.; यो. चि. म. । अ. ४) पोखरमूल, गिलोय, कटैली और सेठका पौष्कर कट्फलं भार्गीविश्वपिप्पलिसाधितम् काथ, खांसी श्वास, कफ और सन्निपातज ज्वरको | पिबेत्वार्थ कफोद्रेके कासे श्वासे च हृद्गदे ।। नष्ट करता है। ___ कफप्रधान खांसी, श्वास और हृद्रोगमें (३८६०) पुष्करादिकल्कः पोखरमूल, कायफल, भारंगी, सेठ और पीपलका (च. सं. । चि. अ. २६; यो. र.; वृ. नि. र. काथ पीना चाहिये । वं. से. । हृदो.; वृ. यो. त. । त. ९९) (३८६३) पुष्करादिकाथ: (३) सपुष्कराई फलपूरमूलं (वा. भ. । चि. अ. १४ गुल्मा.) महौषधं शटयभया च कल्काः । पुष्करैरण्डयोर्मूलं यवधन्वयवासकम् । क्षाराम्लसपिलवणैर्विमिश्राः जलेन कथितं पीतं कोष्ठदाहरुजापहम् ।। स्युतिहृद्रोगविकर्तिकानः ॥ पोखरमूल, अरण्डकी जड़, इन्द्रजौ और पोखरमूल, बिजौरे की जड़, सोंठ, कचूर और हरै । सब चीजें समान भाग लेकर पीसकर उसमें | धमासा । इनका काथ कोष्ठकी दाह और यवक्षार, अनारका रस, घी और सेंधानमक मिला पीडाको नष्ट करता है। । (३८६४) पूतिकरारसयोगः (१) कर सेवन करनेसे वातज हृद्रोग दूर होता है। (३८६१) पुष्करादिकाथः (१) (वं. से. । मसूरि.). (च. सं. । चि. अ. २६.; यो. र. वृ. नि. र.: । रसं पूतिकरञ्जस्य चामलक्या रसन्तथा । वं. से. । हृद्रो.) पिबेत्सशर्कराक्षौद्रं शोफनुत्कफपैत्तिके ॥ काथः कृतः पौष्करमातुलुङ्ग करञ्जके पत्ते और आमलेका रस बराबर पलाशपूतीका शठीसुराहैः। | बराबर मिलाकर उसमें मिश्री और शहद मिलाकर सनागराजाजिवचायवानी पीनेसे कफपित्तज शोथ नष्ट होता है। सक्षार उष्णो लवणेन पेयः॥ (३८६५) पूतिकरञ्जरसयोगः (२) पोखरमूल, बिजौरेकी जड़, पलाश (केस), (वं. से. । श्लीपद.) करंजुवा, कचूर, देवदारु, सांठ, जीरा, बच और | पिबेत्सर्षपतैलेन श्लीपदानां निवृत्तये । , भतीकेति पालन्तरम् । पूतीकरञ्जछदजं रसं वापि यथावलम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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