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कफायप्रकरणम् ]
हतीयो भागः।
[२८३]
(३८४९) पुनर्नवादिकाथः (५)
पुनर्नवा, सांठ, देवदारु, हर्र, शुद्ध भिलावा (वै. म. र. । पटल ११) गिलोय और दशमूल का काथ अथवा गोमूत्रके पुनर्नवाभयाशुण्ठीकालशाकैः समैः शृतम्। साथ गूगल सेवन करनेसे ऊरुस्तम्भ नष्ट होता है। जलं शोफं जयेत्पीतं प्रातः सायं च मात्रया ॥ (३८५२) पुनर्नवादिकाथः (८) __पुनर्नवा, हरे, सांठ और नाडीका शाक । (भा. प्र.; वै. र.; भै. र. । उदर.) इनका काथ बनाकर प्रातः सायं पीनेसे शोथ
पुनर्नवादारुनिशासतिक्ता नष्ट होता है ।
पटोलपथ्यापिचुमर्दमुस्ता । (३८५०) पुनर्नवादिकाथ:१ (६) सनागरच्छिन्नरुहेति सर्वः । (च. द. । उदरा.; । वं. से. । शोथा.; यो. र. कृतः कषायो विधिना विधिज्ञैः॥
उदर.; वृं. मा. । शोथोदर.; वृ. यो. त.। | गोमूत्रयुग्गुग्गुलुना च युक्तः त. १५०)
पीतः प्रभाते नियतं नराणाम् । पुनर्नवां दाय॑भयां गुडूची
सर्वाङ्गशोथोदरकासशूलपिबेत्समूत्रां महिषाख्ययुक्ताम् ।
श्वासान्वितं पाण्डुगदं निहन्ति ॥ त्वग्दोषशोफोदरपाण्डुरोग
पुनर्नवा ( साठी ), देवदार, हल्दी, कुटकी, स्थौल्यपसेकोलकफामयेषु ॥ पटोलपत्र, हरी, नीमकी छाल, नागरमोथा, सोंठ, ___ पुनर्नवा ( साठी), दारुहल्दी, हर्र और | और गिलोय । इनके काथमें गोमूत्र और गूगल गिलोयके काथमें गोमूत्र और गूगल मिलाकर । मिलाकर प्रातःकाल पीनेसे सर्वाङ्गशोथ, उदररोग, पीनेसे त्वग्दोष, सूजन, उदर, पाण्डु, स्थौल्य, खांसी लव
खांसी, शूल, श्वास, और पाण्डुका नाश होता है। प्रसेक और ऊर्ध्वजत्रुगत कफज रोग नष्ट होते हैं । (३८५१) पुनर्नवादिकाथः (७)
(३८५३) पुनर्नवादिस्वेदः (१)
(ग. नि.; वृ. नि. र. । शोथा.) (वै. जी. । विला. ४) पुनर्नवानागरदारुपथ्या
पुनर्नवाग्निनिर्गुण्डीपलितैरण्डजैर्दलैः । ___ भल्लातकछिनरुहाकषायः। सहाचरैर्जलं तप्तं तत्स्वेदः शोफहा मतः ॥ दशाघिमिश्रः परिपेय ऊरु
पुनर्नवा ( साठी ), चीता, संभाल, काली__ स्तम्भेऽथवा मूत्रपुरमयोगः।।
| मिर्च, अरण्डके पत्ते और पियाबांसा । इनका
पानी पकाकर उसकी भाफ देनेसे शोथ नष्ट -वृहद्योगतरजिणीमें इसका नाम "लघुपुनर्नवादि" लिखा है।
होता है।
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