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कपायमकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[२६५]
इनका काथ पित्तकफज ज्वरफो नष्ट | (३७४४) पटोलादिकाथः (२५) करता है।
(वं. से. । व्रण.) (३७४१) पटोलादिकाथः (२२)
ततः प्रक्षालनः काथ पटोलनिम्बपत्रजः। (ग. नि. । विसर्प.)
अविशुद्ध विशुद्धे तु न्यग्रोधादित्वगुद्भवः॥ पीत्वा पटोलनिम्बैस्तु चन्दनोत्पलमुस्तकैः। | अशुद्ध घावको पटोल और नीमके पत्तेकि कार्य विसर्परोगातः शिमं सुखमवाप्नुयात् ॥ काथसे तथा शुद्ध धावको न्यग्रोधादि गणकी
पटोलपत्र, नीमकी छाल, लाल चन्दन, | छालके काथसे धोना चाहिये । नीलोफर (कमल) और नागरमोथा। इनका काथ । (३७४५) पटोलादिकाथः (२६) विसर्प रोगको शीघ्र ही नष्ट कर देता है।
(ग. नि.; वृं. मा.; वं. से. । कुष्ठा.) (३७४२) पटोलादिकाथः (२३) पटोलखदिरारिष्टत्रिफलाकृष्णाचित्रकैः । (ग. नि. । विस.)
तिक्तासनैः पिबेत्वार्थ कुष्ठी कुष्ठं व्यपोहति ॥ पटोलारिष्टादावीत्वक्तिक्तात्रायन्तिकामृताः। पटोलपत्र, खैरसार, नीमकी छाल, त्रिफला, सयष्टीमधुकाः सर्वे विसर्पान् नन्ति पानतः ॥ पीपल, चीता, कुटकी और असना । इनका काथ
पटोलपत्र, नीमकी छाल, दारुहल्दीकी छाल, पीनसे कुष्ठ रोग नष्ट होता है । कुटकी, त्रायमाणा, गिलोय और मुलैठी। (३७४६) पटोलादिकाथः (२७) इनका काथ पीनेसे समस्त प्रकारके 'वीसर्प
(यो. चि. का.) नष्ट हो जाते हैं।
पटोली च गुडूची च मुस्ता चैव धमासकम् । (३७४३) पटोलादिकाथः (२४) निम्बत्वपर्पटें तिक्ता भूनिम्बत्रिफला वृषा ॥ (वं. से. । स्त्रीरो.)
"पटोलादिरयं" काथः वातज्वरहरः स्मृतः॥ पटोलनिम्बासनदारुपाठा
पटोलपत्र, गिलोय, नागरमोथा, धमासा, मूर्वी गुडूची कटुरोहिणीश्च ।
नीमकी छाल, पित्तपापड़ा, कुटकी, चिरायता, सनागरं वा कथितश्च तोये
त्रिफला और बासा । धात्री पिबेत्स्तन्यविशुद्धिहेतोः॥
यह काथ वातजज्वरको नष्ट करता है । पटोलपत्र, नीमकी छाल, असना वृक्षकी । (३७४७) पटोलादिकाथः (२८) छाल या सार, देवदारु, पाठा, मूर्वा, गिलोय,
(भा. प्र.; यो. र. । बाल.) कुटकी और सेठ का काथ धाय(धात्री)को पिलानेसे | पटोलत्रिफलारिष्टहरिद्राकथितं पिबेत् । उसका दूध शुद्ध हो जाता है। | क्षतवीसर्पविस्फोटज्वराणां शान्तये शिशोः॥
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