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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् तृतीयो भागः। [२२५] (३६०१) नवज्वरमुरारिरसः काथमें बुझावें । ( हरेक पदार्थमें कमसे कम सात ( र. र. स. । उ. खं. अ. १२) बार बुझाना चाहिये ) तत्पश्चात् उससे दो गुने हरश्च गन्धकश्चैव कुनटी च समं समम् । गन्धक और शिंगरफको एकत्र मिलाकर पानीके साथ घोटकर उन पत्रों पर लेप करदें मर्ये कर्कोटिकायाश्च रसेन विनियोजयेत् ॥ और उन्हें नवज्वरमुरारिः स्याद्वल्लं शर्करया सह । शराव सम्पुट में बन्द करके उसके उपर सात कपर मिट्टी कर दें । तत्पश्चात् इस सम्पुटको तण्डुलीयरसश्चानुपानं शर्करयाऽपि वा ॥ सुखाकर ४ पहर तक लवणयन्त्रमें तीब्राग्नि पर गुञ्जाद्वयप्रमाणेन ज्वरान्हन्ति नवान्हठात् ॥ पका और फिर यन्त्र के स्वांग शीतल होनेपर शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक और शुद्ध मनसिल, | उसमेंसे औषधको निकालकर पीस लें। समान भाग लेकर सबको एकत्र म्वरल करके एक | इसमें से १-१ रत्ती दवा अद्रकके रसके दिन ककोड़ेके रसमें घोटें। साथ देनेसे नवीन ज्वर नष्ट होता है। इसे खांडके साथ मिलाकर खिलानेसे नवीन नवज्वरविनाशनरसः ज्वर नष्ट होता है। मात्रा---२ रत्ती । अनुपान-चौलाईकी जड़ (वै. क. दु. । स्क. २ ज्वर.) का काथ या खांडका शर्बत । "प्रचण्डरस” देखिये। (३६०२) नवज्वररिपुरसः (३६०३) नवज्वरहरीवटी । (वृ. यो. त. । त. ५९; भा. प्र. ख. २; (र. रा. सुं.; र. का. धे.। वर.; रसें. चि.अ.९) र. रा. मुं. । चर.) तानं पत्रमयं प्रताप्य वहुशो निर्वाप्य पश्चामृते। रसो गन्धो विपं शुण्ठी पिप्पली मरिचानि च । गोमूत्रेऽग्निजले वलिद्विगुणितं पथ्या विभीतकं धात्री दन्तीवीजं च शोधितम।। म्लेच्छेन पिष्टेन च ॥ चूर्णमेपां समांशानां द्रोणपुप्पीरसैः पुटे । लिप्त्वा सप्तमृदांशुकैरथ पुनः सामुद्रयामं पचेत्। | वटीं माषनिभां कुर्याद्भक्षयेन्नूतने ज्वरे ॥ यन्त्रे लावणिके नवज्वररिपुः स्याद्गुञ्जया शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, शुद्ध मीठा तेलिया सम्मितः॥ (बछनाग), सोंठ, पीपल, मिर्च, हर्र, बहेड़ा, आमला ( अत्रआईकरसानुपानम् ।) और शुद्ध जमाल गोटा । सब चीजें समान भाग ताम्रके बारीक पत्रोंको बारबार तपाकर लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली बनावें और पञ्चामृत में वुझावें, फिर गोमूत्र और चीते के। फिर उसमें अन्य चीजें|का कपड़छन महीन चूर्ण १-पञ्चामृत = गिलोय, गोखरू, मूसली, मुण्डी, | मिलाकर सबको १ दिन गूमाके रससे घोटकर उर्दके बराबर गोलियां बनावें। शतावर । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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