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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उ. अ. ११) नेपाकरणम् ] हतीयो भागः। [२०९] नीमके पत्तोंको पीसकर लेप करनेसे घाव शुद्ध | में घी भी मिला लिया जाय तो उसके लगानेसे होकर भर जाता है और खानेसे वमन, कुष्ठ, पित्त, घाव भर जाता है। कफ और कृमिरोग नष्ट होता है । (३५४१) निम्बपत्रादिप्रयोगः (३५३८) निम्बपत्रप्रयोगः (वं. से.; यो. र.; . मा. । व्रणरोगा.; शा. ध.। (वृ. मा.; यो. र. । व्रणशोथा.) निम्बपतिलैः कल्को मधुना व्रणशोधनः । निम्बपत्रं तिलादन्तीत्रिवृत्सैन्धवमाक्षिकम । रोपणः सर्पिषा युक्तो यवकल्केऽप्ययं विधिः ॥ दुष्टत्रणप्रशमनो लेपः शोधनकेशरी ॥ नीमके पत्ते और तिलांको अथवा केवल जौको नीमके पत्ते, तिल, दन्तीमूल, निसोत और पीसकर शहदमें मिलाकर लेप करनेसे व्रण शुद्ध सेंधा नमकके समान भाग मिश्रित चूर्णको शहदमें होता है तथा धीमें मिलाकर लेप करने से घाव मिलाकर लगानेसे दुष्ट ब्रण भी शुद्ध होकर भरजाते भर जाता है। हैं । घावेको शुद्ध करनेके लिये यह एक अत्युत्तम | प्रयोग है। (३५३९) निम्बपत्रादियोगः (१) (भा. प्र.; वं. से.; वृं. मा.; यो. र. । व्रणरो.) (३५४२) निम्बफेनलेपः निम्बपत्रघृतक्षौद्रदा:मधुकसंयुता। (व. नि. र. । दाहकर्म.) वर्तिस्तिलानां कल्को वा शोधयेद्रोपयेवणान्।। हड्दाहमोहाः प्रशमं प्रयान्ति नीमके पत्ते, धी, शहद, दारुहल्दी, मुलैठी निम्बरवालोत्थितफेनलेपात। और तिल। समान भाग लेकर पीसने योग्य चीजोंको यथा नराणां धनिनां धनानि महीन पीसकर सबको एकत्र मिला लीजिए । इस समागमाद्वारविलासिनीनाम् ॥ का लेप करने या इसकी बत्ती बनाकर घावमें भरने- जिस प्रकार वेश्या समागमसे धनिक मनुष्यका से घाव शुद्ध होकर भर जाता है । धन नष्ट हो जाता है उसी प्रकार नीमके पत्तों के (३५४०) निम्बपत्रादियोगः (२) झाग (फेन) लगानेसे तृषा, दाह, और मोह जाता रहता है। (वं. से.; . मा.; यो. र. । व्रण.) (नीमके पतोंको पीसकर उनमें थोडासा निम्बपतमधुभ्यान्तु युक्तः संशोधनः परः। पानी डालकर हाथसे खूब हिलावें, यहां तक कि पूर्वाभ्यां सर्पिषा वापि युक्तः संरोपणः परः॥ उसमें अच्छी तरह झाग उठ आवें । इन्हीं झागांका नीमके पत्तोंको पीसकर शहदमें मिलाकर | आवश्यकतानुसार मस्तक, नाभि अथवा समस्त लगाने से घाव शुद्ध होता है और यदि इन दोनों शरीर पर लेप करें।) For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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