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लेपप्रकरणम् ]
[२०७]
तृतीयो भागः। अथ नकारादिलेपप्रकरणम्
(३५२६) नरास्थिलेपः
| अम्लकाजीमें पीसकर लेप करनेसे विन्दुल नामक (वै. म. र. । पट. ६)
कीटके सम्पर्कसे उत्पन्न हुई पिड़िकाएं शीघ्र ही नरास्थिचूर्ण स्तन्येन कांस्ये घृष्टं प्रलेपयेत् । ।
नष्ट हो जाती हैं। नयने बहिरन्तश्च कुकूणादिहरं परम् ॥ (३५२९) नवनीतादिलेपः ___ मनुष्यकी हडीको अत्यन्त महीन पीसकर (वृ. नि. र. । वातर.) कांसीकी थाली पर स्त्रीके धके साथ घिसकर | माहिषं नवनीतन्तु गोमूत्रक्षीरसैन्धवैः। आंखके बाहर पलकोपर लेप करने और भीतर | खल्वेनकत्र संलोडय वहिना तापयेच्छनैः॥ लगानेसे बालकेकि कुकूणकादि नेत्ररोग नष्ट |
नेत्ररोग नष्ट गात्रमुद्वर्त्तयेत्तेन देहस्फुटनशान्तये ॥
भैंसका नवनीत ( नैनौ घी ), गोमूत्र, दूध (३५२७) नलादिलेपः
और सेंधानमकका चूर्ण समान भाग लेकर सबको (ग. नि. । विसर्प.)
एकत्र घोटकर मंदाग्नि पर पकावें । जब कुछ गाढ़ा
हो जाय तो अग्निसे उतार लें। यदि शरीर फूटता नलवेतसमूलानि गुन्द्रा शैवलशावलम् ।।
हो तो इसकी मालिश करनी चाहिये । विसर्प सघृतं पिष्टमेकैकं लेपनं हितम् ।। नलकी जड़, बेतकी जड़, पटेर, सिरवाल,
(३५३०) नवसादरादिलेपः
(वृ. नि. र. । विष रो.) और दूब घास । इनमेंसे किसीको भी महीन पीसकर घीमें मिलाकर लेप करनेसे विसर्प में लाभ | नवसादरहरिताले पिष्टे तोयेन लेपनाशे। पहुंचता है।
तत्क्षणमेव जयति वृश्चिकविद्धस्य दुर्धर वेडम्॥ (३५२८) नलिनीयोगः
नवसादर ( नसदर ) और हरताल समान ( रा. मा.। क्षुद्ररो. )
भाग लेकर पानीमें पीसकर लेप करनेसे बिच्छूका
विष तुरन्त उतर जाता है। मूलानि बीजान्यथवा पपिष्टान्यम्लारनालेन समं नलिन्याः।
(३५३१) नागरादिलेपः (१) हरन्ति लेपेन तु बिन्दुकीट
(यो. र.; वृ. नि. । सन्निपा.) सम्पर्कजाताः पिटिका क्षणेन ॥ सनागरं देवदारुरास्नाचित्रकपेषितम् । कमलिनीकी जड़ अथवा उसके बीजोको | प्रलेपनमिदं श्रेष्ठं गलशोफनिवारणम् ।।
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