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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ १९२] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [नकारादि गुल्मकुष्ठोदरव्यङ्गशोफपाण्ड्वामयज्वरान् । त्रिफला ४ सेर,लोहचूर्ण २ सेर, सफेद चौंटली, श्वित्रं प्लीहानमुन्माद घृतमेतद्वयपोहति ॥ काकमाची (मकोय) और शहिनी (श्वेत अपराजिता) नीलकीजड़, निसोत, रास्ना, खरैटी, कुटकी, हरेक ६। सेर लेकर सबको ६४ सेर पानीमें पकावें बायबिडंग और कटैली ५-५ तोले लेकर सबको जब १६ सेर पानी शेष रहे तो छान लें। इसमें २ ८ सेर पानीमें पकावें । जब २ सेर पानी शेष रह सेर घी और निम्न लिखित चीजोंका कल्क मिलाजाय तो छानकर उसमें २ सेर घी, २ सेर दही, कर काथ जलने तक पकावें। तथा १० तोले सेंड (सेहुंड-थोहर) का दूध कल्कद्रव्य-बरनेकी छाल, इन्द्रजौ, सांठ, मिलाकर पुनः पकावें । जब पानी जल जाय तो | मिर्च, पीपल, देवदारु, कटेली, भंगरा, और माल धीको छानलें। कंगनी । सब समान भाग मिश्रित १३ तोले इसमें से ५ तोले घृत यवागू या मण्डमें ४ माशे । मिलाकर पिलावें और विरेचन होनेके बाद पथ्य इसे पिलाने और इसकी मालिश करानेसे भोजन करावें। श्वेतकुष्ठ, पामा, विचर्चिका, सिध्म ( छीप) और इसके सेवनसे गुल्म, कुष्ट, उदररोग, व्यङ्ग, किटिभादि कुष्ठ नष्ट होते हैं । शोथ, पाण्डु, ज्वर, श्वेतकुष्ठ, प्लीहा और उन्मादादि (३४९५) नीलोत्पलादिघृतम् रोग नष्ट होते हैं। (वृं. मा.; च. द. । योनि.) (व्यवहारिक मात्रा-१ तोला ) नीलोत्पलोशीरमधूकयष्टी (३४९४) नीलीघृतम् द्राक्षाविदारीकुशपञ्चमूलैः। (वं. से. । कुष्ठ.; ग. नि. । घृता.) स्याज्जीवनीयैश्च घृतं विपकं त्रिफलाढकं तथा प्रस्थावयसोरजसो मतौ। शतावरीकारसदुग्धमिश्रम् ॥ वायसीकाकमाचीभ्यां द्वे तुले शङ्खिनी तुला ॥ | तच्छर्करापादयुतं प्रशस्तद्वि द्रोणेऽपां पचेदेतत्पादभागावशेषितम् । मसग्दरे मारुतरक्तपित्तजे । घृतप्रस्थं तु विपचेद्गर्भे चैतत्समाचरेत् ॥ | क्षीणे बले रेतसि च प्रणष्टे वरुणं वत्सकफलं त्र्यूषणं देवदारु च । कृच्छ्रे च पित्तप्रभवे च गुल्मे ॥ निदग्धिकां भृङ्गराजं पारावतपदीमपि ॥ नील कमल, खस, मुलैठी, द्राक्षा ( मुनक्का), नीलकं नामविख्यातं घृतं कुष्ठविनाशनम् । बिदारीकन्द, कुशकी जड़, काशकी जड़, शरकी जड़, श्वित्राणि रञ्जयेच्चैतत्पानाभ्यञ्जनयोजितम् ॥ दाभकी जड़ और ईखकी जड़, जीवन्ती, काकोली, पामाविचर्चिकासिमकिटभानि च नाशयेत् ॥ क्षीरकाकोली, मेदा, महामेदा, ऋद्धि, वृद्धि, जीवक, For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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