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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुटिकापफरणम् ] तृतीयो भागः। [१७७] यह मोदक हर प्रकारके अर्श रोगको नष्ट (३४५५) निकुम्भाचा गुटिका करते हैं। इनके सेवनसे वृद्ध पुरुषमें भी बल (ग. नि. । गुरि.) आ जाता है। निकुम्भरजनीपाठात्रिकटुत्रिफलामिकाः। ( मात्रा-~~-आधा तोला । अनुपान-उष्ण जल) | बाला वृक्षकवीजं च चूर्ण स्यादनवो गुडः ॥ नोट-चूर्ण बनाना हो तो उसमें अन्य सब पथ्याभिसहितं चूर्ण गवां मूत्रयुतं पचेत् । चीजोंके समान गुड डालना चाहिये और मोदक घनीभूतं तु गुटिकां कृत्वा खादेदभुक्तवान् ।। बनानेके लिये चूर्णसे दोगुना गुड़ मिलाना चाहिये। गुल्मप्लीहाग्निसादास्ता नाशयेयुरशेषतः । नागादिवटिका हृद्रोग ग्रहणीदोष पाण्डुरोगं च दारुणम् ।। रसप्रकरणमें देखिये। दन्तीमूल, हल्दी, पाठा, सोंठ, मिर्च, पीपल, नागार्जुनयोगः हरे, बहेड़ा, आमला, चीता, सुगाध बाला, इन्द्रजौ, (च. द.; वै. र. । अर्श.) और हर्रका चूर्ण तथा पुराना गुड़ समान भाग (प्र. सं. २४०३ त्रिफलादिगुटिका देखिये) लेकर ( चार गुने ) गोमूत्र में पकावें जब गोलियां नागार्जुनवटी बनाने योग्य हो जाय तो गोलियां बनाकर सुखा(र. र. सं.) कर सुरक्षित रक्खें । रसप्रकरणमें देखिये। इन्हें प्रातःकाल खाली पेट सेवन करनेसे नागार्जुनी गुटिका गुल्म, प्लीहा, अग्निमांद्य, हृद्रोग, पाण्डु और ग्रहणी (र. स. क.; र. का. धे.) विकार नष्ट होते हैं । रसप्रकरणमें देखिये। ( मात्रा-३ माशे । अनुपान-उष्णजल ।) नागार्जुमी गुटिका (३४५६) निम्बादिगुटिका (ग. नि. । नेत्रा.) अञ्जनप्रकरणमें देखिये (र. का. धे. । पाण्डु.) नागार्जुनी वर्तिः | निम्बं पटोलं कुटजं त्रिफला मुस्तनागरम् । रसप्रकरणमें देखिये। पचेजलाढके शेषे दद्यादेतत्सुशीतले ॥ नागेन्द्रगुटिका शिलाजतु पलान्यष्टौ मासं च स्थापयेच्च तत् । रसप्रकरणमें देखिये। उद्धृत्य तं शिलातुल्यमेतांश्चापि पलोन्मितान् ।। नेत्रवर्तिः मोचा धात्रीफलतुगाकर्कटश्च निदिग्धिका । अञ्जनप्रकरणमें देखिये। त्रिता पादसंयुतं क्षौद्रं त्रिपसम्मितम् ।। नेपालादिवतिः पयोऽनुपानां गुटिकां कृत्वा खादेघथा बलम् । अञ्जनप्रकरणमें देखिये। कामलापाण्डुरोगेण शोषितों वरपीडितः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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