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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [८४] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [गकारादि ३ दिन पर्यन्त दूधीके रसमें धोटकर २-२ रत्तीकी शुद्ध पारद समान भाग लेकर जम्बीरी नीबूके गोलियां बना लीजिए। रसमें भली भांति घोट लीजिए। - १-१ गोली शहदमें मिलाकर चाटने और इसे १ माशेकी मात्रानुसार खाकर पश्चात् तत्पश्चात् सफेद रालका ३ रत्ती चूर्ण खानेसे घृतमें मिलाकर स्याह मिर्चका चूर्ण चाटनेसे ग्रहणी ज्वरातिसार में आने वाला रक्त और आम शूल नष्ट रोग नष्ट होता है। होता है तथा अग्निकी वृद्धि होती है। पथ्य----तक भात। पथ्य- तक और बकरीका दूध । (१४९३) गगनादिलोहम् (१४९१) गगनसुन्दरो रसः । (रसें. चि. म. । अ. ९; र. चं. । स्त्रीरो., र. सा. (रसें. चिं. म. । अ. ९) सं. र. रा. सुं.; धन्वं. । सोमरोग ) रसगन्धाभ्रकाणाश्च भागानेकद्विकाष्टवान् । गगनं त्रिफला लोहं कुटज कटुकत्रयम् । संचूर्य सर्वरोगेषु युञ्जयाद्वल्लचतुष्टयम् ॥ पारदं गन्धकश्चैव विषटङ्कणसर्जिका ॥ ग्रहणीक्षयगुल्मझेमेहधातुगतज्वरान् । त्वगेला तेजपत्रं च वङ्गं जीरकयुग्मकम् । निहन्ति मूतराजोयं मण्डलैकस्य सेवथा ॥५४ एतानि समभागानि श्लक्ष्णचूर्णानि कारयेत्॥ . शुद्ध पारा, १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग तदर्ध चित्रकं चूर्ण कपैकं मधुना लिहेत् । और अभ्रकभस्म ८ भाग लेकर पारेगन्धक की अवश्यं विनिहन्त्याशुमूत्रातीसारसोमकम् ।। कजली करके अभ्रक भस्म मिलाकर घोट लीजिए। ___अभ्रकभस्म, हर्र, बहेड़ा, आमला, लोहभस्म, इसे ४ वल्ल (८ रत्ती )की मात्रानुसार ४० कुड़ेकी छाल, सोंठ, मिर्च, पीपल, शुद्ध पारद, दिन पर्यन्त सेवन करनेसे, ग्रहणी, क्षय, गुल्म, शुद्र गन्धक, शुद्ध मीठा तेलिया, मुहागेकी खील, बवासीर, प्रमेह, धातुगत ज्वर और अन्य समस्त सजीखार, दालचीनी, इलायची, तेजपात, बंगभस्म, रोग नष्ट होते हैं। सफेद जीरा और स्याह जीरा समान भाग लेकर (व्यवहारिक मात्रा २ रत्ती । अनुपान शहद ।) महीन चूर्ण बना लीजिए । तत्पश्चात् इसमें इस (१४९२) गगनसुन्दरो रसः समस्त चूर्णमे आधा चीतेका चूर्ण मिला लीजिए। . (र. का. धे. । संत्र. चि.) | इसे १ कर्ष (१। तोले )की मात्रानुसार शहदग्ध्वा कपर्दिकामिष्टां यूपणं टङ्कण विषम्। । दमें मिलाकर चाटनेसे मूत्रातिसार और सोमरोग मर्दयेच्छुद्धमृतञ्च तुल्यं जम्बीरजैवैः ॥१०३ । अवश्य नष्ट होता है। मर्दयेद्भक्षयेन्मापं मरिचाज्यं लिहेदनु (१४९४) गगनादिवटी (रसः) निहन्ति ग्रहणीरोगं पथ्यं तक्रोदनं हितम् ॥ (र. सा. सं., र. रा. मुं., धन्वं. । वा. व्या.) ___ उत्तम जातिकी कौड़ियोंकी भस्म, सोंठ, मिर्च, | मृतगगनरसार्क मुण्डतीक्ष्णं सताप्यम् । पीपल, सुहागेकी खील, शुद्ध मीठा तेलिया और सबलिसममिदं स्यायष्टितोयपपिष्टम् ॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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