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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तैलप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। VVVVVvvvvvvvvvvv जड़, जपापुष्प ( औंडू पुष्पी ) मूर्वा, हल्दी, लाल मजीठ, चीता, हाऊबेर, सरपोखा (शरपुंखा) चन्दन, चमेलीके पत्ते, क्षीरकपत्र (क्षीरमोरट लता की जड़, मुंज, पिप्पलीमूल और सोंठके काथ तथा नामक वृक्षके पत्र), मौलसिरीके पत्र, पूतिकरच | इलायची, सोंठ, पीपल, और मिर्च (स्याह)के कल्क (करा भेद) घोटाफल (गोपघोण्टा-बदर भेद-क्षुद्र- सिद्ध तैल मुखके समस्त रोगोंका नाश करता है । वेर), मोम, सारिवा, और कृष्ण सारिवाके कल्क तथा (१३७७) गण्डरािदि तैलम् मुलैठी, क्षीरक, पञ्चकोल (पीपल, पीपलामूल, चव्य, (वं. से.; . मा.; च. द. । कुष्ठा.) चीता, सोंठ) और नागरमोथेके काथसे सिद्ध गव्य गण्डीरिकाचित्रकमार्कवार्कघृत तीनो प्रकारके क्षतों में हितकर है। कुष्ठद्रुमत्वग्लवणैः समूत्रैः। ___ यह ‘गौरादिघृत गले सड़े, पुराने और अन्त- तैलं पचेन्मण्डलदद्रुकुष्ठ र्मुख, छिन्नमांस, स्रावयुक्त, पीडायुक्त, दाह और दुष्टवणारुक्किटिभापहारी॥ पिड़िकायुक्त घावोंको भर कर सुखा देता है। मजीठ, चीता, भृगराज (भंगरा) आक, कूट, (प्र. वि.-घृत १ सेर, कल्क द्रव्य समभाग कुडेकी छाल और सेंधानमक सब समान भाग लेकर मिश्रित पावसेर, काथद्रव्य समभाग मिश्रित २ सेर, | इनके (१ सेर कल्क) और १६ सेर गोमूत्रके साथ काथ करनेके लिए जल १६ सेर, शेष ४ सेर। ४ सेर तैल पका लीजिए । इस घृतको घाव पर लगाना चाहिए। ___यह तैल मण्डल, दाद, कुष्ठ, दुष्ट व्रण, और इति गकरादिघृतप्रकरणम् । ) | किटिभका नाश करता है। (१३७८) गन्धकतैलम् अथ गकरादितैलप्रकरणम् । (बृ. नि. र.; वं. से.; यो. र.; q. मा. । कर्ण., (१३७५) गण्डमालापहं तैलम् (बृ.मा. ग. गं.) यो. त. । त. ७० कर्ण. रो. ) गण्डमालापहं तैलं सिद्धं शाखोटकत्वचा। चूर्णेन गन्धकशिलारजनीभवेन बिम्ब्यश्वमारनिर्गुण्डीसाधितं वाऽपि नावनम् ॥ मुष्टयंशकेन कटुतैलपलाष्टकन्तु । शाखोट (सिहोड़े)की छाल, कन्दूरी, कनेर धत्तूरपत्ररसतुल्यमिदं विपक्वं और संभालूसे सिद्ध तैलकी नस्य लेनेसे गण्डमाला नाडी जयेचिरभवामपि कर्णजाताम् ।। नष्ट होती है। “गन्धकादीनामत्र मिलित्वा पलं प्रायम्" (१३७६) गण्डीरादिंतैलम् (वै.म. । पट. १६) गन्धक, मनसिल, और हल्दीका समान भाग गण्डीराख्यज्वलनहपुफावाणपुलायिवाण- | मिश्रित चूर्ण १ पल और धतूरेका रस ८. पल शौण्डीमूलैः सममिति समैविश्वमेषां कषाये। लेकर यथाविधि ८ पल तैल सिद्ध करें । सिद्धं तैलं वदननिहितं वक्त्ररोगानशेषा- . ___इसे कानमें डालनेसे कानका पुराना नासूर नेलाशुण्ठीमगधमरिचोद्भूतकल्कं निहन्ति ॥ | भी नष्ट हो जाता है। भा० ८ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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