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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir घृतपकरणम् द्वितीयो भागः । २० तोले । (६) मिश्री और शहद ४०-४० काथसे सिद्ध धृत विषम ज्वर, क्षय, शिरशूल, तोले । विधिः---काथ; कक द्रव्य, घृत और पार्श्व पीड़ा, अरुचि वमन, शोथ और हलीमकका दूधको एकत्र मिलाकर घृतमात्र शेष रहने तक नाश करता है। मन्दाग्निपर पकाइये, तत्पश्चात् छानकर उसमें प्रक्षेप | (१३७१) गौराद्यवृतम् । द्रव्योंका महीन (कपड़ छन) चूर्ण तथा मिश्री (भै. र.; धन्वं.; यो. र.; ग. नि.; वृ. मा.; र. र., और शहद डालकर इक्षुदण्ड (गन्ने) से मिलाकर च. द. । व्रणा० . यो. तः । त. ११२) सुरक्षित रखिए। गौरा हरिद्रा मञ्जिष्ठा मांसी मधुकमेव च । ___ आश्विनिकुमारों द्वारा आविष्कृत यह गोधू- प्रपौण्डरीकं हीवेरं भद्रमुस्तं सचन्दनम् ।। मादि रसायन घृत दूधमें डालकर सेवन करनेसे जातीनिम्बपटोलश्च करजं कटुरोहिणी। लिङ्ग शैथिल्य और शुक्र क्षय नहीं होता। यह मधृच्छिष्टं समधुकं महामेदा तथैव च ॥ अत्यन्त बन्य, वायुनाशक, शुक्रोत्पादक, और मूत्र पञ्चवल्कलतोयेन घृतपस्थं विपाचयेत् । कृच्छ नाशक तथा वृद्धोंके लिए हितकारी है। एष गौरो महायोगः सर्व व्रणविशोधनः ॥ इसे २ पल (१० तोले) की मात्रानुसर आगन्तुसहजाश्चैव सुचिरोत्थाश्च ये व्रणाः। सावधानीपूर्वक १० दिन पर्यन्त दूधके साथ सेवन | विषमामपिनाडीन्तु शोधयेच्छीघ्रमेव तु ॥ करनेसे सैंकड़ों रमणियोंके साथ रमण करने की कक द्रव्य-सफेद सरसों, हल्दी, मजीठ, शक्ति प्राप्त होती है। जटामांसी (बालछड़) मुलैठी, पुण्डरिया, नेत्रबाला यदि यह घृत केवल (भातादि रहित) सेवन नागरमोथा, लालचन्दन. चमेली के पत्ते, नीमके पत्ते, करना हो तो ५ तोलेकी मात्रानुसार सेवन करना पटोलपत्र. करञ्ज ( करञ्जवे ) की गिरी, कुटकी, चाहिए। मोम, मुलैठी, और महामेदा समभाग मिश्रित २० तो. (व्यवहारिक मात्रा-१ से २ तोले तक) ____ काथ द्रव्य-पञ्चवल्कल (बड़, गूलर, बेत, (१३७०) गोपीडयादिघृतम् पीपल ( अश्वत्थ ) वृक्ष और पिलखनकी छाल) समभाग मिश्रित २ सेर ।। (वृ. नि. र. । चरा.) विधिः--काथद्रव्योंको कूटकर १६ सेर गोपीड्यामलकीस्थिरामगधजातिक्तापयपालिनी। पानीमें पकाकर ४ सेर रहने पर छान लीजिए द्राक्षाश्रीफलधावनीहिमविषामुस्तेन्द्रजःसाधितम्।। तत्पश्चात् १ सेर गोघृत, यह क्वाथ और उपरोक्त स्यादाज्यं विषमज्वरक्षयशिरःपार्श्वव्यथारोचक- कल्क द्रव्य मिलाकर पकाइये । जब घृत शेष रह च्छीशोषहलीमकपशमनं लीलालतामञ्जरी ॥ जाय तो उतारकर छान लीजिए। .. सारिवा, आमला, शालपर्णी, पीपल, कुटकी, यह गौरादिधृत आगन्तुक, सहज, और नेत्रबाला, मुनक्का, बेलगिरी, चन्दन, लालचन्दन; अत्यन्त पुराने घावोंका तथा विषम मार्गगामिनी अतीस, नागरमोथा और इन्द्रजौके कक तथा नाडी (नासूर) को अत्यन्त शीघ्र शुद्ध कर देता है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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