SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 1- भैषज्य -- - रत्नाकरः [ ४२ ] (१३२७) गुग्गुलुरसायनम् ( र. र. स. । उ. खं अ. २६ ) कान्ताभ्रत्रिफलाविडङ्गरजनी ताप्याद्धदेव द्रुम व्योपैलाग्नपुनर्नवा प्रिगिरिजाङ्कोलैः समंगुग्गुलुम् | पिट्राभृङ्गजलेन सूक्ष्मगुटिकां खादेद्यथासात्म्यतो मेदः श्लेष्मसमीरणोल्वणगदेष्वन्येषु वा पुरुषः।। कान्तलोह भस्म, अभ्रक भस्म, त्रिफला (हरे, बहेड़ा, आमला), बायबिडंग, हन्दी, स्वर्णमाक्षिक म, नागरमोथा, देवदारु, त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल) इलायची, चीता, पुनर्नवा, शिलाजीत और अङ्कल (अङ्कोट) एक एक भाग तथा गूगल सबके समान लेकर भांगरेके स्वरस ( अथवा काथ) में घोटकर गोलियां बना लीजिए । | भारत इन्हें यथोचित मात्रा और अनुपानके साथ सेवन करने से मेदरोग और कफ वातज रोग नष्ट होते हैं 1 (साधारण मात्रा १ ॥ से ३ माशे तक । उष्ण जल के साथ ) (१३२८)गुग्गुलुवटकः (यो.र. भा. २.भा.प्र.) त्र.रो.) त्रिफला चूर्णसंयुक्तो गुग्गुलुर्वटकीकृतः । निषेवितो विबन्धनो व्रणशोधनरोपणः || समान भाग त्रिफला चूर्ण और गुग्गुल मिलाकर टक बना लीजिए । इनके सेवन से मलावरोध नष्ट होता तथा धाव शुद्ध होकर भर आता है I (मात्रा ३ माशे । अनुपान त्रिफला काय या उष्ण जल ) (१३२९) गुग्गुलुवाटिका (भा.प्र. र. र. (बणरो.) विडङ्गत्रिफलाव्योषचूर्ण गुग्गुलुना समम् । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ गकारादि effer anी कृत्वा खादेद्वा हितभोजनः ॥ दुष्टव्रणापची मेहकुष्ठनाडी विशोधनम् ॥ बाय बिड़ङ्ग, त्रिफला (हर्र, बहेड़ा, आमला) और त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ) का चूर्ण १-१ भाग तथा इन सबके समान शुद्ध गुग्गुल लेकर घृतमें कूटकर गोलियां बना लीजिए । इन्हे पथ्य - पालनपूर्वक सेवन करनेसे दुष्टव्रण, अपची, प्रमेह, कुष्ठ और नाड़ीत्रणरोग नष्ट होता है । ( मात्रा २ माशे, अनुपान त्रिफलाका या बायबिडंगका काथ अथवा उष्ण जल | ) (१३३०) गुग्गुलुवटी (बं.से.; भा. प्र. । वातरक्ता.) गुग्गुल्वमृतवल्लीभिर्द्राक्षालुङ्गरसेन वा । त्रिफलाया रसैर्युक्ता गुटिका कोलसम्मिता ॥ भक्षयेन्मधुनाऽऽलोड्य शृणु कुर्वन्ति यत्फलम् । पादस्फोटं महाघोरं स्फोटं सर्वाङ्गजञ्च यत् ।। तत्सर्वं नाशयत्याशु ह्यसाध्यं वातशोणितम् ॥ गिलोय के स्वरस अथवा काथ, या मुनक्का के काथ अथवा बिजौरे नीबू के रस या त्रिफले के काथमें गूगलको घोटकर १–१ कोल (४-४ माशे) की गोलियां बना लीजिए । इन्हें शहद में मिलाकर सेवन करने से पैर अथवा शरीरका भयङ्कर स्फोट ( फटना ) और असाध्य ( कष्टसाध्य ) वातरक्त शीघ्र नष्ट होता है । (१३३१) गुग्गुलुशोधनम् (र.सा.सं. पृ.सं.) gattarai क्षीरे चैव विशेषतः । पकत्वा च खण्डशः शुद्धं गृह्णीयान्मृदुगुग्गुलम् ॥ arest चूर्ण करके गिलोय, और त्रिफला के काथ तथा दूधमें (पृथक् पृथक् ) पकाकर (छान ऐसे) वह शुद्ध हो जाता है । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy