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गुग्गुलुप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[४१ ]
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भगन्दर, कृमि, कण्डू (खुजली), अरुचि, श्वित्र, गोमूत्रके साथ गूगल अथवा अरण्डीका तैल अर्बुद ( रसौलो ) ग्रन्थि, नाडीव्रण, आढ्यवात, पीनेसे पुरातन वातज अण्डवृद्धिरोग शीघ्र नष्ट शोथ, कुष्ट, दुष्टब्रण, कोष्ठगतवायु तथा सन्धि और | होता है । अस्थिगत वायु अत्यन्त शीघ्र नष्ट हो जाती है। । (१३२४) गुग्गुलप्रयोयः (रा. मा.।भगन्द१७) (१३२२) गुग्गुलगुटिका
काथोदकेन मिलितत्रिफलोद्भवेन । (ग. नि. । परिशिष्ट, गुटि. ४) पीतः प्रणाशयति तत्खलु गुग्गुलुर्वा ।। गुग्गुलु कुडवाद ककुभत्वगयोरजोविडङ्गानि। त्रिफलाके क्वाथके साथ गुग्गुलु सेवन करने भल्लातकगोक्षुरको त्रिता त्रिफलाद्वितीयाधम्॥ से भगन्दर रोग नष्ट होता है ।। भुक्तवैनांगुटिकां यथेष्टचरितः षण्मासयोगात्पुमान् (मात्रा २ माशे । प्रोतः सायं सेवन करें।) सव्याधीसभगन्दरान्सपिटिकानीसि- (१३२५) गुग्गुलुप्रयोगः (ग. नि. । शोफा.)
दुष्टत्रणान् ॥ पुनर्नवादारुशुण्ठीकाथे मूत्रेऽथ केवले । खालित्यं पलितं जरामपि तनोर्जित्वाप्रदीप्तानलः। दशमूलरसे वापि गुग्गुलुः शोफनाशनः ॥ सौभाग्याप्तसुखो निरामयतनु वेत्समानांशतम्॥ गूगलको पुनर्नवा, देवदार और सोंठके ___ गूगल २ पल (१० तोले), अर्जुनकी छाल, क्वाथके साथ अथवा केवल गोमूत्रके साथ या दशलोहचूर्ण (भस्म), बायबिडङ्ग, शुद्धभिलावा, गोखरु, मूलके क्वाथके साथ सेवन करने से शोथ रोग निसोत, और द्वितीय त्रिफला ( हस्व त्रिफला- नष्ट होता है। खम्भारी, मुनक्का और फालसेके फल) आधा आधा (१३२६) गुग्गुलरसायनम् (वं. से.। रसाय.) कुडव (१०-१० तोले) लेकर यथाविधि गुटिका त्रिफलाशनखदिरामृतवर्षाभूभृङ्गगोक्षुरकाथे। बना लीजिए।
साढिकेतु गुग्गुलुःपलानि त्रिंशश्च लेहवद्विपचेत॥ इन्हें ६ मास पर्यन्त यथेच्छाहार विहारपूर्वक मधुघृतसिताविमिश्रंलिहेन्नरःकान्तिबलबुद्धियुतः सेवन करनेसे भगन्दर, पिडिका, अर्श, कुष्ठ ब्रण, तथा गदैविमुक्तो जीवति सम्वत्सरास्त्रिशतान् ।। खालित्य (गंज), पालित्य (बाल श्वेत होना) और त्रिफला, असन, खैर, गिलोय, पुनर्नवा, जगका नाश होकर अग्नि प्रदीप्त होती है, तथा | भांगरा और गोखरुके १॥ आढक (६ सेर) काथ मनुष्य सौभाग्य और सुखपूर्वक १०० वर्ष पर्यन्त | में ३० पल (७१॥-) गूगल मिलाकर अवलेहके जीवित रहता है।
| समान पाक सिद्ध करके उसमें यथोचित मात्रानु(१३२३) गुग्गुलुप्रयोगः (बृ.मा.।वृद्धय. ४.) सार शहद, घृत और मिश्री मिला लीजिए। गुग्गुलुं रुबुतैलं वा गोमूत्रेण पिबेन्नरः। इसके सेवनसे मनुष्य कान्ति, बल और बुद्धि वातद्धिं निहन्त्याशुचिरकालानुबन्धिनीम्॥ युक्त होकर ३०० वर्ष पर्यन्त जीवित रहता है।
भा०६
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