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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गुगुलु प्रकरणम् ] www.kobatirth.org द्वितीयो भागः । सेवनफलम् - ।। सेवते गुग्गुलं यो वै वर्षेणापि नरः क्रमात् । स्थावराज्जङ्गमाच्चैव न स्थादस्थ क्षतिर्विषात् ॥ निर्मुक्तो बलितवचोपि पलितो वृद्धो युवा जायते Share goatfari वृद्धत्वहीनो भवेत् ॥ गुल्माष्ठीलकमामवातशमनः कुठं प्रमेहाश्मरीं । शूलानाहविसर्परक्तशमनो भूतोपसृजे हितः ।। सिद्धचारणसेवित, रम्यस्थल हिमगिरि शिखरपर विराजमान्, भिषग्श्रेष्ट, ऋषिपुङ्गव, तपतेजसे देदीप्यमान् महर्षि आत्रेयके निकट अत्यन्त विनम्रभाव से जाकर श्री हारीतने प्रश्न किया- "महाराज गुग्गुलु (गूगल) का प्रयोग, वीर्य, गुण और यह कि वह किन किन रोगों में प्रयुक्त किया जा सकता है बतलाने की कृपा कीजिए।" यह सुनकर महर्षि आत्रेयने उत्तर दिया कि गूगल के वृक्ष प्रायः मरुभूमि (रेगिस्तान), में उत्पन्न होते हैं । गुगुल (इन्ही वृक्ष गोंदका नाम है जो ) निरन्तर सूर्य के तापसे उत्तप्त होकर ग्रीष्म ऋतुमें और शीतके प्रभावसे हेमन्त ऋतु में निकलता है । इसे यथाविधि संग्रहीत करना चाहिए । (गुग्गुल आकृति भेदसे अनेक प्रकारका होता है), • किसीका रंग स्वर्ण सदृश उच्चल, किसीका पद्मरागमणिके समान, और किसी जातिके गुग्गु लुका रंग भैंस के नेत्र के समान नीलवर्ण संयुक्त होता है । यह यक्ष और देवताओंको अत्यन्त प्रिय है । अब में गुग्गुल वैधविधानका वर्णन करता हूं, सुनो [३९] - संस्कारक), बलवर्द्धक, आयुष्य, (आयुकी वृद्धि करनेवाला), कान्ति, मेधा और स्मृतिवर्द्धक, पाप (पीड़ा) नाशक, तथा शुक्र और आर्तत्र शोधक है । प्रयोग विधिः - यथोचित वर्ण, गन्ध और रस संयुक्त गुग्गुलु यथोचित मात्रानुसार लेकर ( जिस रोग में सेवन करना हो उस ) रोगको शान्त करनेवाली औषधियों के साथ पकाइए । जब पीने योग्य जलशेष रह जाय तो उतारकर स्वच्छ वस्त्रसे मृत्तिका, स्वर्ण, रजत अथवा स्फटिक के पात्रमं छान लीजिए । इस भांति निर्मित गुग्गुलुकाको शुभकाल आहार पचजानेके पश्चात् क्षमतापूर्वक, अग्निहोत्र और भक्तिपूर्वक देव-ब्राह्मण - पूजा करके पुष्पोंसे सुसज्जित मन्दिर में प्रवेश करके पीना चाहिए । araरोगोंकी शान्ति के लिए रास्ना, गिलोय, अरण्डमूल, दशमूल, प्रसारिणी और अजSatara काके साथ सेवन करना चाहिए । पित्तरोगोंकी शान्तिके लिए जीवनीय गणकी औषधियों में से किसी एकके काथके साथ अथवा बासा, लाल चन्दन, नेत्रवाला, मुनक्का, कुटकी, खजूर, फालसा, जीवक और ऋषभक के काधके साथ पीना चाहिए । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir कफरोगी शान्ति के लिए - त्रिफला, (हरे, बहेड़ा, आमला), त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पोपल), गोमूत्र, नीमकी छाल, धनिया, पोखरमूल, गिलोय, अजवायन और पटोलपत्र के काथके साथ सेवन करना चाहिए | व्रण, नामूर, ग्रन्थि, गण्डमाला, अर्बुद और प्रमेही शान्ति के लिए त्रिफला के काथके गुग्गुलोर्गुणाः - गुग्गुल त्रिदोषनाशक, वृष्य, स्निग्ध, वृंहण, दीपन, पाकमें कटु, वर्ण्य ( वर्ण । साथ सेवन करना चाहिए । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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