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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ ५०६ ] बनाईये, फिर उसमें अन्य औषधें मिलाकर सबको १ - १ दिन नीम और विष्णुक्रान्ता ( कोयल )के रसमें घोटकर ३ - ३ रत्तीकी गोलियां बना लीजिये । इन्हें अतीसके काथके साथ सेवन करनेसे व्याहिक ( तिजारी ) इत्यादि समस्त ज्वर नष्ट होते हैं । भारत - भैषज्य रत्नाकरः । (२७८२) व्याहिकारिरसः (र. चं.; रसें. सा. सं. । ज्वर.; र. रा. सुं. । ज्वर.) रंसकेन समं शङ्ख शिखिग्रीवञ्च पादिकम् । गोजिया जयन्त्या च तण्डुलीयैश्च भावयेत् ॥ प्रत्येकं सप्तसप्ताथ शुष्कं गुञ्जाचतुष्टयम् । जरणेन घृतेनाद्यात्म्याहिकज्वरशान्तये ॥ खपरिया और शङ्खभस्म १ - १ भाग तथा तूतियाभस्म चौथाई भाग लेकर, एकत्र पीसकर; बनगोभी, जयन्ती और चौलाईके रसकी पृथक् पृथक् सात सात भावना देकर ४-४ रत्तीकी गोलियां बना लीजिये । इन्हें जीरे चूर्ण और घीमें मिलाकर सेवन करनेसे तिजारी आदि ज्वर नष्ट होते हैं । (२७८३) त्र्यूषणादिगुटिका ( वं. से. पाण्डु . ) त्र्यूषणं त्रिफला दारु हरिद्रे नीलिनीफलम् । द्राक्षा चेन्द्रय मुस्ता मञ्जिष्ठा कटुरोहिणी ॥ शतावरी शिग्रुवीजं चित्रकं गजपिप्पली । शालिपर्णी पृष्णिपर्णी बृहती कण्टकारिका || पाठा भल्लातकं दन्ती विशाला सदुरालभा । शठी मधुरसा रास्ना विडङ्गञ्च समाक्षिकम् ।। १ रसेन गन्धं शङ्खचेति पाठान्तरम् । तकारादि एतैश्चूर्णैः समैर्वापि लोहं द्विगुणमावपेत् । यावशुकञ्च संभृत्य गवां मूत्रेण पाचयेत् ॥ ततोऽक्षमात्र गुटिकां पाययेत्तण्डुलाम्बुना | पाण्डुरोगं जयत्याशु ब्रह्मदण्ड इवासुरान् ॥ कृमिकुष्ठप्रमेहार्शो ग्रहणीदोषशोथहा । भगन्दरश्वासकासप्लीहगुल्मोदरापहा ॥ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, देवदारु, हल्दी, दारूहल्दी, नीलका फल, मुनक्का, इन्द्रजौ, मोथा, मजीठ, कुटकी, शतावरी, संहजनेके बीज, चीता, गजपीपल, शालपर्णी, पृश्निपर्णी, कटेली, पाठा, भिलावा, दन्तीमूल, इन्द्रायणकी जड़, धमासा, कचूर, मुलैठी ( अथवा मूर्वा ) रासना, बायबिडंग, और सोनामक्खीभस्म १ - १ भाग लोह चूर्ण इन सबके बराबर और सबसे दो गुना जवाखार लेकर सबका चूर्ण करके गोमूत्र में पकाएं और गाढ़ा होनेपर १ -१ कर्ष (१। तोले) की गोलियां बनालें । I इन्हें तण्डुलाम्बु (चावलों के पानी ) के साथ सेवन करनेसे पाण्डुरोग अत्यन्त शीघ्र नष्ट हो जाता है । इसके अतिरिक्त यह गोलियां कृमि, कुष्ट, प्रमेह, अर्श, ग्रहणी, सूजन, भगन्दर, श्वास, खांसी, प्लीहा ( तिल्ली ), गुल्म और उदर रोगोंका नाश करती हैं । (२७८४) त्र्यूषणादिगुटिका ( र. र. | शिर.) त्रीणि कटूनि तथातिविषाणि क्षारयुतौ त्रिफला त्रिवृतानि । दन्ती निवासकलोधनतानि चन्दनवारिभकणामृतकानि || For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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