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रसप्रकरणम् ]
द्वितोयो भाग ।
[ ५०३:]
शुद्ध पारा १ भाग और शुद्ध गन्धक, अभ्रक- भाग लेकर पारे गन्धककी कजली बनाकर भस्म, सेंधानमक, शुद्ध बछनागविष, कालाजीरा, । उसमें अन्य औषधोंका चूर्ण मिलाकर १ दिन बायबिडङ्ग, गिलोयका सत, चीता, इलायची और भंगरेके रसमें घोटकर (१-१ माषेकी) गोलियां यवक्षार आधा आधा भाग लेकर प्रथम पारे और बनाकर रक्खें । गन्धककी कजली बना लीजिये, तत्पश्चात् उसमें इसे घी, शहद और मिश्रीके साथ सेवन अन्य ओषधियोंका सूक्ष्म चूर्ण मिलाकर १-१ दिन करनेसे पाण्डु और शोषरोग नष्ट होता है ।। संभालू और विजौ रेके रसमें घोटकर सुखाकर इसपर पथ्यादि मृगाङ्क रसके समान पालन सुरक्षित रखिये।
करना चाहिये। इसे २ रत्तोकी मात्रानुसार सेवन करनेसे | (२७७६) त्रैलोक्यसुन्दररसः ( ३ ) वातोदर रोग नष्ट होता है।
(र. का. घे.; र. सा. सं. । पाण्डु.) ___अनुपान-१ प्रस्थ (१ सेर ) घी, २ मानश्चैकं ततः सूतं' षडभ्रं बसुलौहकम् । सेर गोमूत्र, ४ सेर पानी और ५-५ तोले जवा- गन्धकं त्रिफला व्योषं चूर्ण मोचरसस्य च ।। खार तथा पानीमें पिसा हुवा चित्रकमूल एकत्र मुसली चामृतासत्वं प्रत्येकं पञ्च भागिकम् । मिलाकर पकावें । जब पानी और गोमूत्र जल | भावयेत्सर्वमेकत्र त्रिफलानां कषायके ।। जाय तो घृतको छानकर रक्खें ।।
भावनाविंशतिईया दशरात्रं सुभावनाः । उपरोक्त रस खानेके पश्चात् इसमेंसे १।। शिचित्रकमूलाभ्यामष्टधा च पृथक पृथक् ॥ तोला घृत पीना चाहिये ।
त्रैलोक्यसुन्दरो नाम रसो निष्कमितो हितः। ___ इस रसके सेवन कालमें चिकना और गर्म सितया च समं क्षौद्रैः शोथपाण्डुक्षयापहः॥ भोजन करना चाहिये ।
ज्वरातिसारसंयुक्तं सर्वोपद्रवनाशनः ॥ (२७७५) त्रैलोक्यसुन्दररसः (२)
शुद्ध पारद १ भाग, अभ्रकभस्म ६ भाग, (र. र. स. । उ. खं. अ. १९; रं. चं. । पाण्डु) लोहभस्म ८ भाग, शुद्ध गन्धक, त्रिफला, त्रिकुटा, रसगन्धकलोहाभ्रगुडूचीसत्वसूकराः। मोचरस और मूसलीका चूर्ण तथा गुडूचीसत्व त्रिफलाशिमूलानि भृङ्गसारेण भावयेत् ।। । ५-५ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली त्रैलोक्यसुन्दरः सोऽयं सघृतक्षौद्रशर्करः। बनाइये तत्पश्चात् उसमें अन्य औषधोंका चूर्ण मृगावत्पथ्यभुजः पाण्डुशोषं नियच्छति ॥ मिलाकर त्रिफलाके काथकी १० दिनमें २०
शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, लोहभस्म, अभ्रक- भावना दीजिये फिर सहजनेको छालके रस या काथ भस्म, गिलोयका सत, बाराहीकन्दका चूर्ण, त्रिफला- और चीतेकी जड़के काथकी पृथक् पृथक् ८-८ चूर्ण और सहजनेकी जड़की छालका चूर्ण समान भावना देकर ४-४ माषेकी गोलियां बना लीजिये।
१ यह रस लगभग " त्रैलोक्यनाथ"के समान ही है। २ जारितञ्च चतुः सूतमिति पाठान्तरम् ।
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