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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [५००] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः । [तकारादि १-कृष्णाभ्रक सत्व, काचका चूर्ण और शुद्ध हर बार मिलाकर वढ़लके रसमें घोटना चाहिए। सुहागा समान भाग लेकर सबको एकत्र खरल इसी प्रकार हरबार आठवां भाग शुद्ध गन्धक करके जरासे घीमें सेक लीजिए, फिर उसमें उस मिलाकर मछेछीके रसमें घोटकर २० पुट और समस्त चूर्णका आठवां भाग तूतिया मिलाकर | हरबार आठवां भाग शुद्ध स्वर्णमाक्षिकका चूर्ण सम्पुटमें बन्द करके पुटमें फूकिये, इसी प्रकार | मिलाकर काली गायके घृतमें धोटकर १० पुट तूतियाके साथ तीन पुट देकर अमलतासकी जड़के दीजिये। रसमें घोटकर टिकिया बनाकर सुखाकर सम्पुटमें ३-अब उपरोक्त दोनों ( कृष्णाभ्रक सत्व बन्द करके पुट दीजिए । इसी प्रकार अमलतास और लोह) भस्म समान भाग लेकर एकत्र खरल की जड़के रसमें ३, बिजौरे नीबूके रसमें ४ और करके उसमें उसका आठवां भाग कजली मिलाकर पुनर्नवा, वासा, मछेछी, गूगल और त्रिफलाके रस संभालुके रसमें घोटकर गजपुट दीजिये। इसी या काथमें से प्रत्येकमें घोट घोटकर ६-६ पुट प्रकार हरबार कजली मिलाकर और संभालुके दीजिये । तत्पश्चात् समानभाग पारे और गन्धककी रसमें घोटकर १० पुट दीजिए । बनी हुई कजली उपरोक्त चूर्णसे आठवां भाग अब इसमें आठवां भाग वैक्रान्तभस्म, लेकर उसमें मिलाकर ( नीबूके रसमें घोटकर सोलहवां भाग राजावर्तभस्म और समान भाग टिकिया बनाकर) सम्पुटमें बन्द करके गजपुटमें 'रसपर्पटी' मिलाकर सबको १-१ दिन अद्रकके फूंक दीजिए। इसी प्रकार हरवार आठवां भाग रस, गिलोयके रस, गोरखमुण्डीके रस, भंगरेके कजली मिलाकर घोटकर ५० पुट दीजिये।। रस, चीतेकी जड़के काथ, त्रिकुटाके काथ, भांगके २-शुद्ध तीक्ष्णलोह तथा कान्तलोहका चूर्ण स्वरस या काथ और सूरण (जिमिकन्द) के काथ समान भाग लेकर उसे १ दिन धीमें घोटकर में घोटकर अन्तमें अद्रकके रसकी एक भावना उसमें उसका आठवां भाग शंगरफ (हिङ्गुल) देकर महीन चूर्ण करके सुरक्षित रखिये । मिलाकर बढलके रसमें घोटकर टिकिया बनाकर सुखाकर, सम्पुटमें बन्द करके गजपुटकी अग्नि इसके सेवनसे उदावर्त, मलावरोध, उदरशूल, दीजिये । इसी प्रकार दश पुट दीजिए, हर बार बुद्धिकी मन्दता, वन्ध्यत्व, सूतिका रोग, अनेक आठवां भाग शंगरफ मिलाकर वढलके रसमें घोट लेना प्रकारके शूल, विशेषतः भयङ्कर परिणामशूल, चाहिए । फिर समान भाग मिला हुवा शुद्ध रक्तगुल्म और असहय रजः शूल (रजोदर्शनके हरताल और मनसिलका चूर्ण उक्त लोह चूर्णका | समय होनेवाली पीड़ा) इत्यादि अनेक रोग नष्ट आठवां भाग लेकर उसमें मिलाकर वढलके रसमें होते हैं । घोटकर गजपुटकी अग्नि दीजिए। इसी प्रकार पथ्य और अनुपान रोगानुकूल देना चाहिए। १० पुट दीजिये । हरताल और मनसिलका चूर्ण | ( मात्रा-३ रत्ती ।। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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